रायगढ़

गाँव की पगडंडियों में किसानों के चेहरे पर बिखरी उजास मुस्कान

गाँव की पगडंडियों में किसानों के चेहरे पर बिखरी उजास मुस्कान

शासन की नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना ग्रामीण परिवेश में खुशहाली के साथ ला रही है जागृति

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रही मजबूती

आलेख

रायगढ़@ ऊषा बड़ाई 12 मार्च 2020/ गाँव के खेत, खलिहान और पगडंडियों में किसानों और महिलाओं के चेहरे पर उजास मुस्कान है। यह दमक है खुशहाली, समृद्धि और विकास की। मिट्टी की सोंधी महक और उर्वर धरती पर लहलहाते खेतों से किसानों के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन दिखाई दे रहा है। शासन की नरवा, गरुवा, घुरवा एवं बाड़ी योजना किसानों के उन्नति की इबारत लिख रही है। मिट्टी में बोये बीज जब धानी चादर ओढ़ लेती है, तब यह एक संदेश होता है, उत्साह का, नवसंचार का और सामूहिक चेतना का।
सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र की यह नज्म प्रासंगिक लगती है-

मुद्दत के बाद धूप की खेती हरी हुई
अब के बरस बरस गई बादल की ओढऩी
अब्र के खेत में बिजली की चमकती हुई राह
जाने वालों के लिए रास्ता बना जाती है

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने की अवधारणा छत्तीसगढ़ में सार्थक साबित हो रही है। प्रदेश के गाँव-गाँव में यह योजना मूर्त रूप ले रही है। पहली बार किसानों पर केन्द्रित ऐसी योजना बनी है जिससे गाँव-गाँव की तकदीर और तस्वीर बदल रही है। नये वैज्ञानिक तरीकों और बेहतरीन कृषि प्रबंधन ने कृषि कार्य में प्रगति के अनेक द्वार खोले हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल कहते हैं कि शासन किसानों के हित के लिए प्रतिबद्ध है। ग्रामीण परिवेश को इतनी शिद्दत से समझकर पहली बार ऐसी योजना साकार हो रही है, जिसके परिणाम अब दिखाई दे रहे हैं। जिसकी बानगी सरगुजा से लेकर बस्तर के दूरस्थ गाँव के किसानों में भी दिखाई दी है।
नरवा योजना के तहत जीपीएस मैपिंग पद्धति का प्रयोग कर चयनित नरवा में जल संरक्षण के उपायों को अपनाना एक उम्दा कार्य है, जिससे किसानों को बारहमासी पानी सिंचाई के लिए मिलता रहेगा। गौठान निर्माण से तो गाँव में एक जागृति आयी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में महिलाएँ भी घर की चारदीवारी से बाहर निकल पड़ी है और अपनी बातों को अभिव्यक्त करना सीख गयी हैं। सामूहिक खेती कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और गमला निर्माण, वर्मी कम्पोस्ट निर्माण एवं पोल निर्माण से भी उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है। सीधे तौर पर किसानों से जुड़े होने के कारण यह योजना ग्रामीण परिवेश में जागरूकता लाने का सशक्त माध्यम बना है और कारगर सिद्ध हुआ है। किसानों का जीवन स्तर उन्नत बना है। चौक, चौपाल और चौराहों पर चर्चा करते हुए ग्रामवासी यह कहते हैं कि इससे एकता, स्वावलंबन एवं नेतृत्व की भावना जागृत हुई है तथा उनमें संकोच कि भावना दूर हुई है।
किसानों में एक जज्बा है जिससे वे वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने एवं पशु प्रबंधन करने के तरीकों को अब अपनाने की दिशा में अग्रसर हैं और उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आ रहा है। कृषि कार्य के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है और इससे पलायनवाद में भी कमी आयी है। खेतों में पानी की उपलब्धता के लिए नरवा योजना महत्पूर्ण है। प्रदेश में नरवा योजना के तहत कई नाले, नरवा को पुनर्जीवन मिला है। बेहतरीन जलीय संरचनाओ का निर्माण श्रृंखलाओं में करते हुए गेबियन स्ट्रक्चर, बोल्डर चेकडेम, ब्रशवुड स्ट्रक्चर, परकोलेशन टैंक का निर्माण किया गया है। वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से जल संरक्षण किया जा रहा है, जिसके अनूठे परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। प्रदेश में 1402 नरवा चयनित किए गए है। जिसमें 34519 कार्य स्वीकृत किए गए है। रायगढ़ में 90, बालोद में 50, बलौदाबाजार में 62, बलरामपुर 60, बस्तर में 40, बेमेतरा में 40, बीजापुर में 40, बिलासपुर में 70 दंतेवाड़ा में 33, धमतरी में 34, दुर्ग में 29, गरियाबंद में 46, जांजगीर-चाम्पा में 87, जशपुर में 81, कांकेर में 65, कबीरधाम में 42, कोण्डागांव में 52, कोरबा में 50, कोरिया में 45, महासमुन्द में 50, मुंगेली में 30, नारायणपुर में 20, रायपुर में 40, राजनांदगांव में 90, सुकमा में 22, सूरजपुर में 64 एवं सरगुजा में 70 नरवा चयनित किए गए है।
घुरवा कम्पोस्ट पिट से बने जैविक खाद का खेती किसानी में उपयोग स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत अच्छा है। वेस्ट डिकम्पोजर किसानों के खाद बनाने के लिए अत्यंत कारगर विधि है। हरा खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट कृषि के लिए उपयोगी है। रासायनिक खाद से दूर परंपरागत जैविक खाद के उपयोग से गुणवत्तायुक्त भोजन, अनाज, दाल, सब्जी मिलेगी। प्रदेश में अब तक 317160 मिट्रिक टन जैविक खाद का उत्पादन किया गया है। रायपुर संभाग में 72828 मिट्रिक टन, बिलासपुर संभाग में 88017 मिट्रिक टन, दुर्ग संभाग में 69015 मिट्रिक टन, सरगुजा संभाग में 50723 मिट्रिक टन, बस्तर संभाग में 36577 मिट्रिक टन जैविक खाद का उत्पादन किया गया है। जिसमें से गौठान द्वारा 99.2 मिट्रिक टन खाद का विक्रय अब तक किया गया है। स्वप्रेरित घुरवा उन्नयन के लिए 190346 किसानों द्वारा कार्य किया जा रहा है। अब तक 53208 भू नाडेप, 7621 नाडेप टाका, 9698 वर्मी बेड, 578 बायोगैस के कार्य पूर्ण हो चुके है।

गौठान पशुओं के संरक्षण एवं संवर्धन व नस्ल सुधार के लिए गांव में केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। गौठान योजना के साकार होने से कई परिणाम सामने आए हैं। किसान जानवरों की वजह से चना, सरसों, गेहूँ, अरहर, उड़द की फसल कई बार लगाना नहीं चाहते थे। लेकिन अब गौठान निर्माण से दोहरी फसल के क्षेत्र का रकबा अब बढ़ रहा है। प्रदेश में प्रथम चरण में कुल स्वीकृत गौठान 1880 है, वहीं 1757 गौठान पूर्णता की ओर है। द्वितीय चरण में कुल स्वीकृत गौठान 3378 है, जिनमें से 66 गौठान पूर्णता की ओर है। गाँव-गाँव में बाड़ी योजना फलीभूत हो रही है। बाड़ी में किसान सभी तरह की सब्जियां लगा रहे हैं और इससे उनकी उन्नति की राहें बनी है।
इस वर्ष मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने यह घोषणा की थी कि शासन की ओर से 2500 रुपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की जाएगी। राज्य शासन ने यह सुनिश्चित किया है कि वादे के मुताबिक किसानों को धान की राशि प्राप्त हो वहीं अंतर राशि दी जाएगी। राज्य गठन के बाद से इस वर्ष नवीन आर्थिक मॉडल के तहत 82.80 लाख टन धान की अब तक की सर्वाधिक धान खरीदी की गई है, जो अभूतपूर्व रिकॉर्ड है। शासन की कर्जमाफी योजना से किसानों को संबल मिला है और उनके जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है। अभी हाल ही में राज्य शासन की ओर से राष्ट्रीय कृषि मेला का आयोजन भी किया गया। जहां किसानों के लिए कृषि के नवीनतम तकनीकों को अपनाने एवं कृषि संबंधी उपयोगी जानकारी भी दी गई। राज्य शासन की लोकहितैषी नीतियों एवं योजनाओं से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है और किसानों के जीवन में समृद्धि आयी है।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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