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25 हजार से ज्यादा मुर्गियों वाले पोल्ट्री फार्म को लेनी होगी अनुमति,केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड ने बोर्ड ने तय की गाईडलाइंस…

  • आबादी क्षेत्र से 500 मीटर दूरी पर ही लग सकेंगे फार्म

रायगढ़। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पोल्ट्री फार्म संचालन को लेकर भौहें टेढ़ी की हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नए सिरे से गाईडलाइन जारी करने को कहा था। अब नए नियम जारी हो गए हैं जिसके तहत तीन वर्गों में पोल्ट्री फार्म को रखा गया है। 25 हजार से अधिक मुर्गियों वाले फार्म को पर्यावरण विभाग से अनुमति लेनी होगी। साथ ही अपशिष्टों का निराकरण करने के लिए नियम तय कर दिए गए हैं। अब कहीं भी किसी भी जमीन पर पोल्ट्री फार्म स्थापित करने का तौर तरीका बदल जाएगा क्योंकि सीपीसीबी ने नए नियम जारी कर दिए हैं।

एनजीटी ने पोल्ट्री फार्म से होने वाली गंदगी को रोकने के लिए लगाए आवेदन पर सुनवाई के बाद मामले को सीपीसीबी के पास भेजा था। सीपीसीबी को निर्देश दिया गया था कि अब ऐसे पोल्ट्री फार्म को संचालित करने के लिए कड़े नियम बनाए जाएं। सीपीसीबी ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक 5000 से 25000 मुर्गियों वाले छोटे, 25000 से एक लाख तक मध्यम और एक लाख से अधिक मुर्गियों वाले फार्म को बड़े यूनिट की कैटेगरी में रखा गया है।

छोटे फार्म को कुछ राहत मिली है लेकिन मध्यम और बड़े फार्म के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। अब तक देखा जा रहा था कि मुर्गी फार्म से निकलने वाली गंदगी का निराकरण सही तरीके से नहीं किया जाता है। कहीं नदी-नालों में भी इसे डाल दिया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा सकेगा। दरअसल मुर्गी फार्म की गंदगी से अमोनिया और हाईड्रोजन सल्फाईड जैसी जहरीली गैसें उत्सर्जित होती हैं, जो वातावरण को नुकसान पहुंचाती हैं। डस्ट से भी आसपास की आबादी को नुकसान होता है। गंदगी की वजह से बदबू भी फैल जाती है। अब सीपीसीबी ने कहा है कि एक ही जगह पर 25 हजार से अधिक मुर्गियां पालने पर पर्यावरण विभाग से स्थापना और संचालन की अनुमति लेनी होगी। एयर एंड वाटर एक्ट के तहत इन्हें अनुमति दी जाएगी।
दूरी पर विशेष ध्यान सीपीसीबी ने अब पोल्ट्री फार्म के लिए आबादी क्षेत्र से न्यूनतम 500 मीटर दूरी तय की है। वहीं नदी, तालाब, नहर या किसी पेयजल स्रोत से 100 मीटर की दूरी रखनी होगी। नेशनल हाईवे से 100 मीटर और स्टेट हाइवे से 50 मीटर की दूरी अनिवार्य होगी। ग्रामीण सड़क से 10-15 मीटर की दूरी रखनी होगी। मुर्गी फार्म को ग्रीन कैटेगरी में रखा जाएगा जिसके तहत 15 साल का कन्सेंट दिया जाएगा। अपशिष्ट को कम्पोस्ट बनाया जाएगा। निकलने वाले गंदे पानी को भी एक टैंक में स्टोर करके ग्रीन बेेल्ट डेवलप करने में उपयोग किया जाएगा।

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