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वर्तमान राजनीति एवं देश का भविष्य : मनोज कुमार श्रीवास्तव, भा.प्र.से. (से.नि.) द्वारा संगोष्ठी में रखे गए विचार

राजनीति समाज में ऐतिहासिक रूप से चली आ रही खाइयों (faultlines) को इस्तेमाल कर, exploit कर राज्यसत्ता की ताकत पर कब्जा करने का नाम नहीं है। बल्कि उन खार्इयों को पाटकर एक समग्र और समतामूलक समाज और पारस्परिक विश्वास और सम्मान के मूल्यों को सुदढ़ करने की क्रांतिकारी प्रतिबद्धता का नाम है। इसको ध्यान में रखते हुए आज की राजनीति को समझने के लिए तीन मुख्य कसौटियों से उसको आंकना जरूरी है।

पहली कसौटी है, सामाजिक और आर्थिक समता के लिए विजन और प्रतिबद्धता। 70 सालों में इस दिशा में विशेषकर सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कुछ काम हुए हैं। पर शैक्षणिक विषमता, जो असमानता के जड़ में है, उसको खासकर दलित और पिछड़े वर्गों के भार्इ-बहनों के बीच कैसे दूर किया जाए इसका कोर्इ स्पष्ट विजन और ताकतवर रणनीति नहीं विकसित हो पार्इ। उलटे और बढ़ी है। ‘‘असर (ASER)’’ के रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2007 में पांचवे क्लास के करीब 42 प्रतिशत बच्चे भाग (division) के साधारण गणित हल करने की क्षमता रखते थे, वह लगातार घटते हुए वर्ष 2014 में 26 प्रतिशत ही रह गया। आर्थिक समता के लिए तो विजन और प्रभावी हस्तक्षेप की और भी कमजोरी रही है। नतीजा यह है कि OXFAM के वर्ष 2018 के रिपोर्ट के अनुसार भारत के 119 अरबपतियों (billionaires) की संम्पत्ति उस वर्ष 2200 करोड़ प्रतिदिन की हिसाब से इजाफा के साथ बढ़कर 28000 अरब़ या 28 लाख करोड़ रुपये के बराबर हो गयी, जो केंद्रीय सरकार के वर्ष 2018-19 के देश के पूरे बजट बराबर थी! वहीं भारत के आधी आबादी करीब 67 करोड़ लोगों की संपत्ति में मात्र 1% का इजाफा हुआ!

दूसरी कसौटी राजनीति के नियंत्रण में जनोन्नमुखी न्याय आधारित सुशासन की गुणवत्ता का है। लेकिन चाहे वह मामला बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और घोटाले का हो, या लोगों के जीवन पर असर डालने वाली नीतियों में evidence-based सोच की कमी, या उनके delivery सिस्टम में अक्षमता हो, हर आयामों में भारी कमी लोग महसूस करते हैं।

और राजनीति और सरकार के साथ लोगों के विश्वास का रिश्ता, और आपसी सम्मान और बराबरी के मूल्यों का सृजन तीसरी कसौटी है, जो राजनीति के क्रान्तिकारी क्षमता को आंकता है। पर जब राजनीति में चुनाव की फंडिंग में अधिकाँश स्थितियों में पारदर्शिता न हो, और quid pro co की अपेक्षा से बड़े लोगों के धन लगते तो यह उम्मीद रखना कि ऐसे मूल्यों का सृजन होगा जहां बड़ी मछली छोटी मछली को न निगले, और देश के लिए wealth creation के नाम पर साधारण कन्ज्यूमर के साथ धोखाधड़ी और शोषण न हो, यह बहुत बड़ी अपेक्षा होगी।

राज्य सत्ता विभिन्न पार्टियों के हाथों में आती-जाती रहेंगी, बदलती रहेगी। लेकिन देश का भविष्य एक वैकल्पिक राजनीति के निर्माण से ही बदलेगा। जिसके पास समाज के उपेक्षितों को पहली कतार में पूरी क्षमता और स्वाभिमान के साथ खड़ा रखने के लिए प्रभावी शैक्षणिक, और अन्य people’s empowering मुद्दों जैसे स्वास्थ्य पर और आर्थिक मजबूती प्रद्दन करने हेतु विजन हों। जिसमें शासन व्यवस्था को तंत्र के रूप में नहीं, बल्कि लोकसेवा की गरिमा और प्रतिबद्धता पर स्थापित करने की क्षमता हो। और जहां राजनैतिक पार्टियां और उनके नेता समाज में बराबरी और पारस्परिक सम्मान और संवेदनशीलता के मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक माने जाए। इस दिशा में हमें संघर्ष और सृजन दोनों को साथ में लेकर चलना होगा।

राजनीति समाज और देश को व्यापक रूप से प्रभावित करती है।क्योंकिसमाज जीवन का लगभग हर अंग आज राजनीति के प्रभाव में है।राजनीति में कैसे लोग प्रभावी होंगे इसका फैसला संसदीय लोकतंत्र में मतदाताओं के द्वारा होता है।परन्तु आज राजनीति अनेक प्रकार की विकृतियों का शिकार हो गई है।जो विकृतियाँ आई है उनमें से कुछ निम्नानुसार हैं–1 दलों में क्षत्रप राज्य व आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव।
2 परिवार वाद3 जातिवाद4 धर्मवाद व धर्मांधता5 क्षेत्रीयता 6 कालाधन व भृष्ट चुनाव 7 अपराधीकरण 8 राजनीति में पूंजी निवेश 9 विज्ञापन राजनीति 10 विचारहीनता और व्यवसायीकरण। इन दश दोषों ने राजनीति में जो रावणावतार पैदा किया है उसे कैसे मारा जाय यह मुख्य चिंता का विषय है।बिहार बुद्ध गांधी लोहिया जयप्रकाश की कर्मभूमि है।स्व कर्पूरी ठाकुर रामानन्द तिवारी रामवृक्ष बेनीपुरी अनुग्रहनारायण सिंह जैसे योद्धाओं ने बिहार की क्रांतिकारी धरती पर अपने संघर्ष के माध्यम से समाजवाद के बीज बोये थे।पर आज बिहार के हालात चिन्ता जनक हैं।
कारपोरेट पूंजी और डब्ल्यू टी ओ ने दुनिया को लूटने का षडयंत्र का नक्शा तैयार कर लिया है।जो एकतरफ निजीकरण मशीनीकरण भारी उद्योगीकरण के द्वारा बेरोजगारी का समुद्र तैयार कर रहा है वहीं दूसरी तरफ विषमता के टापू खड़े कर रहा है।अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।हथियारों के व्यापार और तेल पर कब्जे के लिए दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी है।किसान इन दुखी हैं और आत्महत्या करने को लाचार किया जा रहा है।सरकारें ऐन केन प्रकार सत्ता के लिए पतन की किसी भी सीमा तक जाने को तैयार है।इन हालात से निजात पाने के लिए मार्ग खोजने के लिए श्री संजय रघुवर ने इस संगोष्टी के माध्यम से जो पहल की है वह निसन्देह सराहनीय व महत्वपूर्ण है।इन का हल समाजवादी आंदोलन के पुनर्जीवन से ही सम्भव है।लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के माध्यम से एक प्रयास किया गया है ताकि वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत हो सके।युवा पीढ़ी को समता के विचारों के साथ जोड़कर बदलाव के आंदोलन की शुरुआत करना होगा।एक ईमानदार राजनीति जो गांधी लोहिया जयप्रकाश के विचार खम्भों पर अम्बेडकर कर्पूरी ठाकुर की विचार काया पर खड़ी हो को तैयार करना ही आज का युगधर्म है।संसद के सभी दल डब्ल्यू टी ओ के भगवान को पूज रहे हैं।हमे इनसे हटकर राजनीतिक दल खड़ा करना होगा।छोटे छोटे मोर्चे अब कारगर नहीं होंगे ।देशी विदेशी सरकारी गेर सरकारी धन से उपकृत ऐन जी ओ केवल विकल्प की राजनीति को रोकने के हथियार है।जो आराजनीतिक होने की राजनीति करते हैं और व्यवस्था को टिकाए रखने में मददगार बनते हैं।निजीकरण के नाम से जनधन से खड़ी सार्वजनिक संपत्ति को बेचा जा रहा है और सेवाओं को शिक्षा चिकित्सा यातायात आदि को बाजार की वस्तु बनाया जा रहा है। आइये गांधी के150वे वर्ष में हम बापू के मार्ग से अहिंसा सत्य व सविनय अवज्ञा आंदोलन से व्यवस्था बदलने की राजनीति शुरू करें।

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