भेदो न भासते अभेदो भासते सर्वत्र…जय माँ गुरु
भेदो न भासते अभेदो भासते सर्वत्र।
जय माँ गुरु
औघड़ तान्त्रिक नहीं होते। वे तन्त्र में विश्वास नहीं करते, अनर्गल देवी-देवता में विश्वास नहीं करते। वे आपकी श्रद्धा और विश्वास में विश्वास करते हैं और वे अपने मे विश्वास करते हैं न कि किसी बाहरी पर। इसलिए वर्णाश्रम व्यवस्था के जन्मदाता आज भी औघड़ों को क्रुर दृष्टि से देखते हैं तथा इनके बारे मे भ्रान्तियॉ पैदा करते है।
जब पुरुष अघोरेश्वर की स्थिति मे पहुँच जाते हैं तो उनकी भाषा “ना“, “हॉ” से भी परे हो जाती है। वे सभी पदार्थों से और सभी कारणों से अनासक्त रहने लगते हैं। इस स्थिति को ही “संज्ञाशुन्य अवस्था” कहते हैं।
औघड़ समदर्शी ही नहीं, समवर्ती भी होते हैं। यह उनका बड़प्पन है कि वे सब के यहॉ खान-पान स्वीकार कर लेते है। सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, अग्नि और वायु के समान ही उनमे देह-बुद्धि नहीं है। वे अभेद होते हैं।
भेदो न भासते अभेदो भासते सर्वत्र।
…परम् पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी