70 साल बाद मिला तवांग को भारत में जोड़ने वाले गुमनाम हीरो को सम्मान

अरुणाचल प्रदेश में तवांग को भारत का हिस्सा बनाने वाले गुमनाम हीरो मेजर रालेंगनाओ बॉब खातिंग की इस बहादुरी को 70 साल में पहली बार वह सम्मान मिल ही गया, जिसके वे हकदार थे। रविवार को यहां चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू और अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ब्रिगेडियर (अवकाश प्राप्त) बीडी मिश्रा की मौजूदगी में मेजर खातिंग के स्मारक का अनावरण किया गया।
मणिपुर के तंगखुल नगा समुदाय में जन्मे मेजर खातिंग ने तत्कालीन नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के सहायक राजनीतिक अधिकारी के तौर पर 17 जनवरी, 1951 को बिना खून की एक बूंद बहाए तवांग को भारतीय झंडे के नीचे शामिल करने का कारनामा किया था। असम के तत्कालीन राज्यपाल जयरामदास दौलतराम के सीधे आदेश पर उन्होंने असम राइफल्स के 200 जवानों के साथ यह कारनामा किया था। इससे पहले तवांग स्वतंत्र तिब्बत प्रशासन के नियंत्रण में था।
बाद में इंडियन फ्रंटियर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (आईएएफएस) के पहले अधिकारी, नगालैंड के मुख्य सचिव और विदेश में आदिवासी समुदाय के पहले भारतीय राजदूत बने मेजर खातिंग को कभी भी तवांग की इस उपलब्धि के लिए सम्मानित नहीं किया गया। हालांकि उनके प्रशासनिक व सार्वजनिक जीवन की उपलब्धियों के आधार पर देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री और ब्रिटिश सरकार की तरफ से मेंबर ऑफ ब्रिटिश एंपायर सम्मान से नवाजा गया, लेकिन तवांग की जीत में उनकी अहम भूमिका को दर्शाने वाला कोई सम्मान कही नहीं था। लेकिन शनिवार को मेजर खातिंग के बेटे जॉन (सेवानिवृत्त आईआरएस अधिकारी) और अन्य पारिवारिक सदस्यों की मौजूदगी में कालावांगपू ऑडिटोरियम में मेजर रालेंगनाओ बॉब खातिंग मेमोरियल की नींव रखी गई।




