महाराष्ट्र में सबसे पहले बना कृषि कानून, विरोध राजनीति से प्रेरित है: देवेंद्र फडणवीस
किसान जिन कृषि कानूनों के विरोध मे दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं, इस तरह का कृषि कानून महाराष्ट्र में सबसे पहले बन चुका है। नए कृषि कानून को बनाने में दरअसल केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का ही अनुकरण किया है। महाराष्ट्र में बीते कई साल से कांट्रैक्ट फार्मिंग शुरू है। मंगलवार को विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने यह दावा करते हुए महाविकास आघाड़ी सरकार के खिलाफ हमला बोला। उन्होंने कहा कि राजनीतिक कारणों से इसका विरोध किया जा रहा है। फडणवीस ने दावा किया कि कृषि के लिए कानून बनाने वाला महारोष्ट्र देश का पहला राज्य है।
देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ठेके पर खेती और कृषि से संबंधित नियम सबसे पहले महाराष्ट्र में लागू हुआ। राज्य में यह कानून वर्षों से लागू है। ये कानून कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार में बना। लेकिन आज वही लोग कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। फडणवीस ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए हमने किसानों की फसल का न्यूनतम मूल्य तय करने के लिए कानून बनाया और एमएसपी से कम दर पर खरीदी करने वालों के खिलाफ एक साल की सजा का प्रस्ताव किया था। लेकिन कांग्रेस-एनसीपी ने इसका विरोध किया। इसलिए वह कानून पारित ही नहीं हो पाया।
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, किसानों को मिलनी चाहिए मंडियों से आजादी
विपक्ष के नेता फडणवीस ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे एनसीपी प्रमुख शरद पवार की आत्मकथा (लोक माझे सांगाती) को उद्धृत करते हुए उन्हें आईना दिखाया। फडणवीस ने कहा कि पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की आजादी होनी चाहिए। एपीएमसी का सिंडिकेट खत्म करना होगा। पवार ने लिखा है कि जब हमें बारामती से अपना माल लेकर पुणे या मुंबई की मंडी में जाते है तो ट्रांसपोर्ट और हमाली आदि में कुल बिक्री का 17 फीसदी खर्च हो जाता है। किसानों के लिए मंडी में ही उत्पाद बेचने के बंधन के चलते हर साल 50 हजार करोड़ का कृषि उत्पाद बर्बाद हो जाता है। यह राष्ट्रीय हानि है। लेकिन आज उनकी भूमिका बदल गई है।
विधानसभा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री से नए कृषि कानूनों को तुरंत रद्द करने की अपील की
महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष नाना पटोले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर अपील की है कि केंद्र द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों को तुरंत रद्द कर दिया जाए। उन्होंने पीएम मोदी को नौ दिसंबर को लिखे पत्र में कहा कि अगर इन कानूनों को रद्द करने में और देरी हुई तो संवैधानिक पद पर होने के बावजूद उन्हें किसानों के मौजूदा विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।