
रायगढ़।एक ओर औद्योगिक विकास की तेज़ रफ्तार,तो दूसरी ओर हरे-भरे जंगलों का सन्नाटा। रायगढ़ जिला आज एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है,जहां विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की मांग समय की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है।
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छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला वर्षों से औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। कोयला खनन,ताप विद्युत परियोजनाएं, इस्पात संयंत्र और निर्माण गतिविधियां यहां की अर्थव्यवस्था का आधार बन चुके हैं।
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लेकिन इस विकास की दौड़ में जिस चीज़ की सबसे अधिक अनदेखी हुई है,वह है पर्यावरण संतुलन।
वृक्षों की कटाई और वन्य जीवन पर संकट

हाल ही में तमनार क्षेत्र में अधिक वृक्षों की कटाई ने जनचेतना को झकझोर कर रख दिया। मानसून के आगमन पर जब ये पेड़ कोपलों से हरे थे और जीवन का उत्सव मना रहे थे, तभी उन्हें विकास के नाम पर धराशायी कर दिया गया।
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खनन कंपनियों को मिली स्वीकृति के बाद यह कार्य किया गया, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस प्रक्रिया में NGT (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) के निर्देशों की भी अवहेलना हुई है।
जल स्रोतों पर असर

कोयला खनन और औद्योगिक उत्सर्जन के चलते जिले की प्रमुख नदियों — केलो,कुरकुट और माण्ड – का जलस्तर और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भू-जल स्तर में गिरावट तथा जल स्रोतों के दूषित होने की शिकायतें आम हो गई हैं।
आदिवासी और स्थानीय समुदायों की पीड़ा
रायगढ़ जिले के आदिवासी अंचलों में रहने वाले लोग अपने जंगल,जमीन और संस्कृति को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पुनर्वास की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी, मुआवज़ा वितरण में अनियमितता और रोजगार के वादों के टूटने से उनमें असंतोष गहराता जा रहा है।
शासन-प्रशासन और उद्योगों की जवाबदेही

शासन-प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) की प्रक्रिया अक्सर मात्र औपचारिकता बनकर रह जाती है। विकास परियोजनाओं की मंजूरी में स्थानीय जन-सुनवाई की प्रक्रिया या तो सीमित होती है या सतही तौर पर पूरी की जाती है।
क्या है रास्ता?
- सतत विकास (Sustainable Development) को प्राथमिकता देना होगी।
- पारदर्शी पर्यावरण मूल्यांकन प्रणाली को सख़्ती से लागू करना चाहिए।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी और सहमति को अनिवार्य बनाना होगा।
- कटे हुए वृक्षों के बदले वनरोपण की स्पष्ट और समयबद्ध योजना सुनिश्चित करनी होगी।
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रायगढ़ जिले का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा,जब विकास की नींव पर्यावरणीय विवेक और सामाजिक न्याय पर रखी जाएगी। वरना यह ‘विकास’ एक ऐसा विनाश बनकर उभरेगा,जिसकी भरपाई आने वाली पीढ़ियों को करनी पड़ेगी।
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आपके विचार आमंत्रित हैं — क्या रायगढ़ जिले में सचमुच विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन गुम होता जा रहा है?




