संचार क्रांति का ‘नो नेटवर्क’ चमत्कार: रायगढ़-खरसिया के बीच बसे गांव की टावर यात्रा…
ग्रामीण नेटवर्क विहीन क्षेत्र से रिपोर्टिंग
कहां हो तुम?” का जवाब – “यह कॉल संभव नहीं हो पा रही है
21वीं सदी के संचार क्रांति युग में जब दुनिया मंगल ग्रह तक सेल्फी भेज रही है, वहीं रायगढ़ से खरसिया के मध्य स्थित गांव के लोग नेटवर्क खोजने के लिए पहाड़, पेड़ और छत पर चढ़ने का “प्राचीन” अभ्यास जारी रखे हुए हैं।
“कहां हो तुम?” का जवाब – “यह कॉल संभव नहीं हो पा रही है”
जियो हो या एयरटेल, बीएसएनएल हो या कोई और सेवा प्रदाता, सभी कंपनियों ने मिलकर ऐसा “अनूठा गठबंधन” बनाया है कि गांववासी मोबाइल नम्बर तो रखे हैं लेकिन उससे संपर्क कर पाना चमत्कार से कम नहीं। यहां के टावर केवल हवा के झोंके या आसमान में तैरते बादलों के साथ नेटवर्क देने का वादा निभाते हैं।
टावर से लुका-छिपी का खेल
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि “जैसे पुराने जमाने में लोग दवा के लिए वैद्य जी के चक्कर काटते थे, वैसे ही अब नेटवर्क के लिए टावर की खोज में पूरा गांव इधर-उधर दौड़ता है।” नेटवर्क पकड़ने के लिए लोग मोबाइल को आकाश की ओर उठाते हैं और कभी-कभी टावर तक ‘आध्यात्मिक यात्रा’ भी करनी पड़ती है।
“यहां नेटवर्क है!” – गांव की नई अफवाह
गांव के बच्चों ने हाल ही में नेटवर्क वाले “जादुई कोने” खोजने का खेल शुरू किया है। जैसे ही कोई एक जगह नेटवर्क पकड़ता है, वह स्थान “तीर्थ स्थल” की तरह पवित्र घोषित कर दिया जाता है, और वहां तुरंत लंबी लाइन लग जाती है। ‘नेटवर्क है, आपको नहीं दिखता!’
मोबाइल सेवा कंपनियां कहती हैं कि टावर तो हैं लेकिन गांववासियों की उम्मीदें “थोड़ी ज्यादा” हैं। कंपनियों ने सलाह दी है कि मोबाइल के बजाय कबूतरों का उपयोग करें।
‘नेटवर्क है, आपको नहीं दिखता!’
उड़ती खबर के अनुसार मोबाइल सेवा कंपनियां कहती हैं कि टावर तो हैं लेकिन गांववासियों की उम्मीदें “थोड़ी ज्यादा” हैं। कंपनियों ने सलाह दी है कि मोबाइल के बजाय कबूतरों का उपयोग करें।
अंत में समाधान
गांव के जागरूक लोगों ने निर्णय लिया है कि अगर मोबाइल नेटवर्क नहीं सुधरा तो अगला कदम टावर पर धरना देना होगा। फिलहाल, गांव का संदेश साफ है – “मोबाइल है, टावर है, लेकिन नेटवर्क कहीं गुम है!”
(नोट: इस रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नेटवर्क पकड़ने में जो मशक्कत हुई है, उसके लिए पाठक स्वयं जिम्मेदार हैं।)