ईवी कार बाजार में हाइब्रिड पर जोर…
बिजली से चलने वाले वाहनों के परिदृश्य में बदलाव आ रहा है। मारुति सुजूकी ने हाइब्रिड तकनीक के इस्तेमाल पर जोर बढ़ा दिया है।
देश के यात्री कार बाजार के बिजली चालित वाहनों की दिशा में बढ़ने के बीच एक मोड़ आता दिख रहा है। अब तक बाजार विशुद्ध इलेक्ट्रिक व्हीकल की ओर बढ़ रहा था लेकिन अब हाइब्रिड तकनीक भी एक अहम परिवर्तन लाने वाले उपाय के रूप में उभर रही है। यह प्रणाली पेट्रोल-डीजल इंजन (आईसीई) से स्वच्छ विकल्प की ओर बढ़ रहे ग्राहकों को सक्षम और प्रभावी विकल्प मुहैया करा रही है।
यह सही है कि फिलहाल देश में सीमित मात्रा में ही हाइब्रिड वाहन उपलब्ध हैं, वहीं इनकी बिक्री में तेजी देखने को मिली है। गत वर्ष की दूसरी छमाही से इन्होंने बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों को पीछे छोड़ दिया। इस वर्ष भी यह रुझान कायम है। अमेरिका में भी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में ठहराव आ रहा है।
बिजली से चलने वाले वाहनों के परिदृश्य में बदलाव आ रहा है। मारुति सुजूकी ने हाइब्रिड तकनीक के इस्तेमाल पर जोर बढ़ा दिया है। उसने बलेनो, स्विफ्ट, फ्रॉन्क्स जैसी किफायती कारों में हाइब्रिड पेश करने की बात कही है। ग्रांड विटारा और इनविक्टो में पहले से यह प्रणाली आ रही है। माना जा रहा है कि इससे वाहन उद्योग में उथलपुथल मच जाएगी। मारुति की बिक्री का करीब एक चौथाई इसकी विस्तारित हाइब्रिड रेंज से आ सकता है। इसकी एक बड़ी वजह भारतीय उपभोक्ताओं में पर्यावरण को लेकर बढ़ती चेतना हो सकती है।
बहरहाल, यह बात कई बड़ी भारतीय कंपनियों के लिए मुश्किल पैदा करने वाली हो सकती है। टाटा मोटर्स और महिंद्रा ने अपने सभी वाहनों के ईवी संस्करण उतारने का निर्णय लिया है। उन्होंने एक व्यावहारिक विकल्प के रूप में हाइब्रिड वाहनों पर विचार ही नहीं किया। भारत सरकार ने बहुत धैर्यपूर्वक ईवी क्रांति का समर्थन किया है और उसे जल्दी ही अपनी प्रोत्साहन योजनाओं में समता के उपाय करने पड़ सकते हैं। टोयोटा और सुजूकी बहुत आक्रामक तरीके से मांग कर रहे हैं कि हाइब्रिड कारों पर 28 फीसदी के बजाय 12 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर वसूल किया जाए।
इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5 फीसदी जीएसटी लगता है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी इससे सहमत नजर आते हैं। टाटा मोटर्स हाइब्रिड कारों के लिए कर दरों में कटौती के खिलाफ है लेकिन लगता नहीं है कि उसकी बात लंबे समय तक सुनी जाएगी।
वास्तव में हो क्या रहा है? हाइब्रिड कारें तीन मायनों में बढ़त पा जाती हैं: उनका निर्माण ईवी की तुलना में सस्ता है। उन्हें बनाने का खर्च आईसीई इंजन वाली कार और इलेक्ट्रिक कार के बीच पड़ती है। इतना ही नहीं इन कारों में बैटरी चार्ज करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। ध्यान रहे कि देश में ईवी के विकास में चार्जिंग का बुनियादी ढांचा विकसित करना एक बड़ी चिंता और बाधा है।
सामान्य शब्दों में कहा जाए तो एक हाइब्रिड कार आईसीई इंजन और खुद चार्ज होने वाली बैटरी के साथ काम करती है। शहर के यातायात में कार बैटरी से ऊर्जा लेती है जबकि राजमार्गों पर वह पेट्रोल से चलती है। दोनों माध्यमों के बीच वह अबाध आवाजाही करती है।
टोयोटा पहली वैश्विक कार निर्माता कंपनी है जिसने 1997 में अपने प्रियस ब्रांड के साथ हाइब्रिड कार पेश की थी। तब से उसने इस तकनीक पर काफी काम किया है। हालांकि अक्सर यह कहते हुए इस कंपनी का मजाक भी उड़ाया जाता रहा है कि उसने ईवी पर तथा उत्सर्जन को पूरी तरह समाप्त करने पर ध्यान नहीं दिया।
कंपनी के चेयरमैन अकियो टोयोडा इस बात पर टिके रहे कि ग्राहक हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक के बीच चयन करने के लिए स्वतंत्र रहें। परंतु अब जबकि ईलॉन मस्क की टेस्ला भी अमेरिका में लोकप्रियता गंवा रही है तो यह तय लग रहा है कि आखिरकार टोयोटा ही सही साबित होंगे।
भारत में टोयोटा और सुजूकी के बीच साझेदारी ने दूसरों के लिए हालात मुश्किल बना दिए हैं। मारुति सुजूकी की पहचान एक छोटी कारें बनाने वाली कंपनी की है। उसे बड़ी कारों के साथ अपना प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो मजबूत बनाने की जरूरत महसूस हुई, खासतौर पर एसयूवी के साथ।
गत वर्ष टोयोटा इनोवा हाईक्रॉस और टोयोटा अर्बन क्रूजर हाइराइडर को लेकर उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया ने हाइब्रिड कारों को लेकर रुचि बढ़ा दी। मारुति इन्हीं कारों को सुजूकी ग्रांड विटारा और इनविक्टो के नाम से बेचती है।
मारुति सुजूकी और टोयोटा के बीच उत्पादन साझेदारी को लेकर एक समझौता हुआ है जहां टोयोटा की क्षमता का एक हिस्सा उसके लिए आरक्षित है। आगे बढ़ें तो मारुति अपनी क्षमताओं का भी विस्तार कर रही है। वह अपने समूचे बेड़े में हाइब्रिड वाहनों को शामिल कर रही है। उसकी योजना है कि तीन अलग-अलग हाइब्रिड संस्करण तैयार किए जाएं। टोयोटा पहले ही हाईक्रॉस में एक परिपक्व हाइब्रिड विकल्प दे रही है वहीं सुजूकी को सस्ते हाइब्रिड विकल्पों के विकास का नेतृत्व करने का मौका दिया गया है।
टोयोटा भारत में इटियॉस के साथ छोटी कारों के बाजार में नाकाम रही। ऐसे में माना जा सकता है कि सुजूकी की इंजीनियरिंग और डिजाइन तथा उसकी आक्रामक लागत कटौती ने कंपनी के निर्णय को प्रभावित किया हो। होर्माज्ड सोराबजी जैसे वाहन विशेषज्ञों का अनुमान है कि इन सस्ती हाइब्रिड कारों की अनुमानित ईंधन किफायत यानी माइलेज 35 किलोमीटर प्रति लीटर तक हो सकती है। यानी मौजूदा हाइब्रिड कारों की तुलना में तकरीबन दोगुनी। इससे बाजार में भारी उथलपुथल मच सकती है।
हाइब्रिड कारों में यह उभार इस बात का संकेत है कि पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का इस्तेमाल हमारे अनुमान की तुलना में कहीं अधिक समय लेने वाला है। भारत में इसकी राह में प्राथमिक बाधा है देशव्यापी स्तर पर बैटरी चार्जिंग का बुनियादी ढांचा तैयार करने में कमी। यह ढांचा अपेक्षित समय में तैयार नहीं हो सका है और इसके लिए निजी-सार्वजनिक साझेदारी का विकल्प अभी भी तलाश किया जा रहा है।
तब तक यही संभावना नजर आ रही है कि ईवी अधिकांश भारतीयों के लिए दूसरी कार का विकल्प बनी रहेगी जिसका इस्तेमाल वे शहर के भीतर करेंगे और उसे अपने आवासीय परिसर में चार्ज कर सकेंगे। मारुति सुजूकी ने इस बात को समझ लिया है। हाइब्रिड मॉडल पर उसके जोर बढ़ाने की यह एक प्रमुख वजह है।