राहुल के साथ भगवान जगन्नाथ महाप्रभु के दर्शन यात्रा…
आइए मानसिक पुरी यात्रा में हमारे साथ चले आपको वास्तविक पुरी यात्रा करें का अहसास करा कर हीं छोड़ेंगे.…
एक ओर खुद में कई रहस्यों को समेटे भगवान जगन्नाथ महाप्रभु का मंदिर तो वहीं सागर के लहरों की आवाज,उगते-डूबते सूर्य का दिलकश नजारा और नर्म रेत का सुखद अहसास…. पुरी में आपको सब कुछ मिलेगा. यहां आध्यात्मिक सुख भी है तो समुन्द्र की लहरों से टकराने का रोमांच भी.सागर किनारे बैठ कर उसके विशाल रूप को निहारते हुए मन एक अलग ही संसार में खो जाता है. ओड़िसा के जगन्नाथ पूरी की यही तो खासियत है एक बार जो यहां आया वो बस यही का होकर रह जाता है…
पापा का पुरी जाने की योजना करीब चौथी कक्षा से ही तय किए कब स्कूल के कक्षाएं छुट VIT आंध्र प्रदेश पहुंच गए समय पता नहीं चला. दरअसल समय काल और महाप्रभु का बुलावा होने पर विजयवाड़ा से सुलभ रेल साधन होने के कारण मैं भी भगवान श्री जगन्नाथ जी की धरती जगन्नाथ पुरी जाने-देखने के लिए काफी रोमांचित था. हिन्दू धर्मग्रंथों में जिस चार धाम की चर्चा हुई है, उसमें बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम् के अलावे एक धाम जगन्नाथ पुरी भी है. यूं तों घुमक्कड़ी का शौक कहें या औघड़ दानी महादेव कृपा कहें इससे पहले औघड़ दानी अवधुत भगवान राम के जन्म धाम गुडी ग्राम,रामेश्वरम, यमनोत्री,गंगोत्री, केदारनाथ,बद्रीनाथ,पुरी तिरुपतिबालाजी,शनि सिन्हापुर, महाकालेश्वर,ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर,विश्वेश्वर (विश्वनाथ), त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुष्मेश्वर तो घूम चुका था, पुनः पापा के साथ अब पुरी धाम के दर्शन का मौका मिल गया.
03अप्रैल को चांपा से तिरुपति जाने के लिए रिजर्वेशन 22647कोच्चुवेली सुपर फास्ट एक्सप्रेस में था. ट्रेन चांपा से रात 8:25 में खुली और अगले दिन 03 बजे विजयवाड़ा हम लोग विजयवाड़ा में विश्राम किए.यहां एक दिन रूककर हम लोगों ने किया उसके बाद दूसरे दिन विजयवाड़ा से निकल पड़े ओड़िसा के सफ़र पर…
विजयवाड़ा से पुरी के लिए में हमलोगों का 17480 तिरुपति पुरी एक्सप्रेस रिजर्वेशन था. 1300किलो मीटर थकान मिटा भी नहीं था लेकिन पापा का जगन्नाथ महाप्रभु के दर्शन की तीव्र अभिलाषा था और विश्वास था कि हमारी यात्रा को वो शुभ बनायेंगे, जिसके बाद हमलोग उनका नाम लेते हुए ट्रेन पर चढ़ गए.
अगले दिन दोपहर करीब 04 बजे हमलोग पुरी की पावन धरती पर उतर चुके थे. ओड़िसा के बहुत आना हुआ था लम्बे समय तक पुरी में महा प्रभु का दर्शन लाभ मिला था दास को पुनः पापा के साथ आने का विश्वास नहीं हो रहा था जो कभी कलिंग कहलाया तो कभी उत्कल नाम से जाना गया, भागीरथी वंश के राजा ओड ने जिस राज्य की स्थापना की, उस ओड़िसा के धार्मिक शहर पुरी में हूं.
पुरी का सबसे पहले उल्लेख महाभारत के वनपर्व में मिलता है. इसके बाद कूर्म पुराण, नारद पुराण, पध्यम पुराण में भी इस जगह की चर्चा हुई है. लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान विष्णु जब अपने चारों धाम की यात्रा पर निकलते हैं तो हिमालय पर बने बद्रीनाथ धाम में स्नान करते हैं,पश्चिम स्थित गुजरात में वस्त्र धारण करते हैं, ओड़िसा के पुरी में भोजन करते हैं और फिर दक्षिण में रामेश्वरम में जाकर सो जाते हैं.
पुरी स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले होटल से लेकर घुमने सम्बंधित सभी जानकारी पापा पहले से जुटा चुके थे. इसके बाद अपने होटल पहुंचे, जहां फ्रेश होकर हमलोग भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु जी के मंदिर की ओर निकल पड़े.
इस मंदिर के निर्माण के संदर्भ में कहा जाता है कि इसे मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न ने बनवाया था. भगवान जगन्नाथ ने सपने में आकर उन्हें दर्शन दिया और कहा कि पूरी में दारु पेड़ से मूर्ति का निर्माण करें. लकड़ी से भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए खुद भगवन विष्णु और विश्वकर्मा मूर्तिकार की वेश में आये थे. दोनों ने राजा के सामने ये शर्त रखी कि जब तक मूर्ति बन नहीं जाता तब तक उन्हें कमरे से बाहर रहना होगा. शर्त के अनुसार राजा कमरे के बाहर ही रहे. इस दौरान करीब एक महिना बीत गया पर मूर्ति बनने की कोई खबर अन्दर से उन्हें नहीं मिली, जिसके बाद राजा अपना वायदा तोड़ कर कमरे के अन्दर चले गए. लेकिन उस वक़्त तक मूर्ति के हाथ का निर्माण नहीं हुआ था. मूर्तिकार ने उन्हें बिना हाथ वाली मूर्ति देते हुए उसकी पूजा करने को कहा. जिसके बाद उसी अवस्था में राजा ने भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों की स्थापना मंदिर में की.
करीब 192 फुट ऊंचे शिखर वाले इस मंदिर का निर्माण बारहवीं सदी में हुआ था. इस भव्य मंदिर के शिखर पर भगवन विष्णु के सुदर्शन चक्र के प्रतीक के रूप में अष्टघातु से निर्मित एक चक्र लगा है. हर दिन चक्र के पास बने खंभे में अलग अलग तरह का ध्वज लगाया जाता है. यह मंदिर चारों ओर से 20 मी ऊंची दीवार से घिरा है, जिसके अन्दर मुख्य मंदिर के अलावे कई छोटे बड़े मंदिर भी बने है. हालांकि हर मंदिर की तरह यहां भी भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भगवन के दर्शन मिला।
मंदिर के बाहर ही जूता चप्पल, बैग, मोबाइल,कैमरा सब जमा करना पड़ता है. हमलोग जब निकले थे तब तक शाम होने को थी और धूप भी जबरदस्त थी, जिस कारण जमीन पर पैर रख कर चलना मानो ऐसा लग रहा था की आग पर चल रहे हों ऊपर से गर्मी अलग, शासन प्रशासन द्वारा सड़क में मेट और पानी के फवारा से आस-पास के वातावरण को ठंडा कर दिया था ,यहां की प्रक्रिया पूरी कर अब भगवान के दर्शन करने मंदिर में गए. जहां जगत के नाथ को उनके भक्तों से दूर बैठाया गया था. श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच करीब एक-दो बांस की दूरी से हमलोगों ने उनके दर्शन किये. उसके बाद बाहर निकल कर अलग अलग कई और मंदिरों में भी भगवान के दर्शन किये.
इस मंदिर के दक्षिण पूर्व में स्थित रसोई भी काफी प्रसिद्ध है. परिसर में स्थित सभी भगवानों के दर्शन करवा कर हमारे साथ जो पंडे थे वो हमलोगों को उस रसोई की ओर ले गए. रसोई के बाहर दीवारों में बने कई छोटे छोटे सुराख़ से अन्दर का दृश्य देखा. लेकिन ताज्जुब इस बात का कि यहां भी पैसों की लूट मची थी और आस्था का मजाक बनाया जा रहा था. बाहर से सिर्फ उस रसोई को देखने के लिए भी भक्तों से पैसे लुटे जा रहे थे. इस रसोई में लकड़ी के इस्तेमाल से मिटटी के बर्तन में भगवान के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं. जिसे महाप्रसाद कहते है. वहीँ मंदिर में गंगा-यमुना नाम के दो कुएं हैं, इसके पानी से ही महाप्रसाद तैयार किया जाता है. अंदर मिटटी की हांडी एक पर एक चढ़ी थी और सैकड़ों लोग पसीने से लथपथ अपने अपने काम में व्यस्त थे. मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट की माने तो इस रसोई में प्रतिदिन एक लाख लोगों के लिए भोजन बनाया जा सकता है. हमें बताया गया कि यहां जो भोग तैयार हो रहा वो पूरी तरह शाकाहारी होता है, जिसमें प्याज-लहसुन का भी प्रयोग नहीं होता.
पर आश्चर्य यह देख कर हुआ कि दोपहर में जब भगवान को भोग लग गया उसके बाद रसोई में पके भोजन की मंदिर परिसर में ही बोली लगनी शुरू हो गयी थी. लोग मिट्टी के छोटे बड़े हांडियों में चावल, दाल, सब्जी रख कर जोर जोर से चिल्ला कर उसे बेच रहे थे. जिसे खरीदने के लिए लोगों की भीड़ लगी थी.
सुना था मंदिर दर्शन के लिए आने वालों को पूरी के इस जगन्नाथ मंदिर में कथित आस्था के नाम पर किस कदर दिन दहाड़े लूटा जा रहा था मैं यह सब देख कर हैरान था.पहले भगवान के दर्शन के नाम पर, फिर रसोई देखने के बहाने, उसके बाद प्रसाद लेने के लिए, हर मंदिर में पंडों द्वारा दक्षिणा के नाम पर जबरदस्ती वसूली जा रही रंगदारी, सब चीजों के लिए पॉकेट ढीली करनी पड़ रही थी. फोकट में आप चाहे जितनी श्रद्धा और भक्ति दिखाए, कोई फायदा नहीं, क्योंकि जगत के नाथ कहे जाने वाले भगवान जगन्नाथ सिर्फ पैसे वालों को ही अपना आशीर्वाद देते हैं, इस मंदिर में आकर पता चला की ऐसा कुछ नहीं था सभी सहजता से दर्शन कर रहे थे.
तो मंदिर में केले के पत्तों पर महाप्रसाद का भोग ग्रहण कर हमलोग मंदिर से बाहर निकले. रात में घूमने से अच्छा है कि खाना खाकर होटल में चलकर रात्रि विश्राम किया जाए,
पुरी में हमलोग होटल श्रीधाम में ठहरे थे जो काफी अच्छे लोकेशन पर था. यहां से श्री जगन्नाथ मंदिर और पुरी बीच दोनों ही वाकिंग डिस्टेंस पर था. मंदिर से लौटने के बाद हमलोगों ने कुछ देर होटल के अपने वातानुकूलित कमरे में बिताया, फिर दूसरे दिन कोणार्क सूर्य मंदिर के तैयार होकर निकल गए .
बंगाल की खाड़ी का तट पुरी रेलवे स्टेशन से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है. यहां लहरों के साथ मस्ती करने के लिए पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ जुटती है. इस तट को देश के सर्वश्रेष्ठ समुंद्री तटों में से एक माना जाता है. समंदर के किनारे सूर्य को उगते-डूबते देखना, बिखरी सुनहरी रेत, ठंडी हवाओं का बहना, साफ़ पानी की लहरें और उसपर बर्फ सा झाग… ये लुभावने दृश्य आंखों में एक अलग सुकून लाते हैं.
सागर की लहरों से भींगता जहां तन –मन, चलो घूम आएं..
हमलोगों ने पुरी तट पहुंच कर पहले बालू के ढेर पर अपना सामान रखा, सामने उफान मारती लहरों को देख कर हमारा मन भी मचलने लगा और फिर खुद को नमकीन करने उतर पड़े सागर में. हां यहां के खुबसूरत दृश्यों को कैद करने के लिए सेल्फी स्टिक के साथ मेरा मोबाइल इस दौरान भी मेरे साथ रहा. तेज लहरों के थपेड़ों से जूझते हुए हमने फुल ऑन मस्ती की.
यहां जगन्नाथ मंदिर के नजदीक सड़क के दोनों तरफ एक कतार में कई दुकानें सजी थी. जहां तरह तरह की चीजें बिक रही थी. पुरी में हाथों से बनाए आइटम दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इनमें भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, लकड़ी पर नक्काशी, पत्थर से निर्मित वस्तुएं और सीप के इस्तेमाल से एक से बढ़कर एक कलात्मक चीज़ें शामिल है. साथ ही बाजारों में हर डिजाईन के शंख भी मिल रहे थे.
बाजार में सामानों की खरीदारी करते वक़्त अन्य चीजों के अलावा हमलोगों ने भी अपने बजट के अनुसार एक-एक शंख ख़रीदा.
शॉपिंग ख़त्म कर जब वापस होटल जाने के लिए मुड़े तो देखा चौराहे पर मंदिर के सामने भगवान जगन्नाथ भगवान का रथ खड़ा था. जाते जाते एक बार फिर हमने बाहर से ही भगवान को प्रणाम किया और फिर कई सेल्फी लेकर पुरी के इन लम्हों को यादगार बनाया.
पेशा से कानून का ज्ञाता, जाति से पत्रकार हूं, घुमक्कड़ी का शौक बचपन से है और सफर में मोबाइल का कैमरा भी खूब घिसता हूं, ताकि यहां अपनी यात्रा के उन लम्हों को तस्वीरों के साथ क़ैद कर सकूं।अंधों के शहर में आईना और कंघी बेच रहा हूं गंजों के शहर में…बाकी कैसा लगा ये पढ़कर के जरुर बताइएगा…