नदी बहती और बोलती है,
छूती और पकड़ती है
दिखती और छुप जाती है
कभी शिलाओं बीच ,
कभी अंतःसलिला बन।
( श्रावण माह में पूरे उफान पर #केलो नदी )
नदी बहती और बोलती है,
छूती और पकड़ती है
दिखती और छुप जाती है
कभी शिलाओं बीच ,
कभी अंतःसलिला बन।
( श्रावण माह में पूरे उफान पर #केलो नदी )