डॉक्टर नरसिंह थवाईत को अंतिम प्रणाम -केलो कपूत का
केलो कपूत शिव राजपूत की चिट्ठी केलो के नाम
“जनसेवा से सन्त का सफर पूरा हुआ डॉक्टर नरसिंह थवाईत को अंतिम प्रणाम”ए
केलो आई रायगढ़ जिले के पुरातत्व इतिहास पर्यावरण नदी पहाड़ जंगल के क्षेत्र में काम करने का अवसर तूने मुझे दिया इसके लिए मेरा आभार स्वीकार करना।
आज मैं अपने जन्मस्थान पुसौर के बारे में कुछ सुनी-पढ़ी बात बताना चाहता हूँ हालांकि मुझे मालूम है कि इसके लिए मुझे कोई इनाम इकराम, तमगा नहीं मिलने वाला है तेरा कपूत होने का खिताब ही काफी है और तेरा सन्तान होने के कारण ना मुझे व्हेनसांग, फाह्यियान, मेगस्थीन, अलबरूनी या फिर मार्को पोलो आदि इतिहासकारों की फेहरिस्त में मेरा नाम जुड़ जाएगा बहरहाल पुसौर का इतिहास टटोलने पर जो मिला वह सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।
सर्वप्रथम पुसौर के लालाधुर्रा देवलास, रकतमावली, (समलाई) दाऊगुड़ी चारों दिशाओं के प्राचीन देवी-देवता सहित पुसौर के ग्रामदेवता सुढ़ापाट को कोटिशः प्रणाम करता हूँ।
केलो आई गांव के मजबूत रिश्ते से मेरे मामू डॉ. नरसिंह बरई (थवाईत) जी का दुखःद निधन हो गया सो जानना उन्होंने पुसौर ब्लाक को एलोपैथिक चिकित्सा से परिचित कराया था वे सिर्फ सातवीं पास थे शिक्षक की नौकरी छोड़कर डॉक्ट्री पेशे में आए थे योग के जानकार संयमित जीवन के हामी थे और हारमोनियम बजाना व रामायण के भी प्रेमी थे पुसौर अस्पताल आयुर्वेदिक अस्पताल था एलोपेथी चिकित्सा के शुरुआती दौर में उन्होंने मैडम फैड्रिक और तात्कालीन डॉ. मलिक के साथ पुसौर में आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर विश्वास करने की बुनियाद रखी थी मामू आपका दीया बुझकर भी पुसौर वासियों के दिल में आलोकित रहेगा।
रिकॉर्ड से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 1939 में साहेबराम गौंटिया रायगढ़ परगना का चुनाव जीते थे अतः कृषि और राजनीति के क्षेत्र में अदब से उनका नाम लिया जाता है।
शिक्षा के क्षेत्र में महामना लेकरू प्रसाद गुप्ता जी का नाम मिलता है इसी क्रम में छवि गौंटिया और जयराम साव आदि ने भी परचम लहराए थे।
शिल्पकारों की सूची के प्रथम चरण में युधिष्ठिर महाणा के बुजुर्ग लम्बोदर महाणा का नाम आता है जिन्होंने अपने हाथों से हनुमान मंदिर की प्रतिमा 1948 में बनाई थी जिसकी पूजा आज भी होती है यूं तो कसेर शिल्पकारों में मनबोध महाणा का भी उल्लेख मिलता है बहरहाल उन दिनों कलश चिमनी माण (धान नापने का पैमाना) जागरो (दीया) तम्बाकू डिब्बी कराटो (महिलाओं द्वारा पैसा रखने की गोल डिब्बी) आदि बनाने के दैनिक उपयोग के बर्तन बनाने के कई सिद्धहस्त कारीगर थे जिनका पता लगाना अभी बाकि है, सुनते हैं कि चिंतामणी कसेर उर्फ बिनकिया ने गांवों में घूम-घूम कर बर्तन-भांड़ा बेचने जिसे बुलाभुंई कहते थे किया करते थे।
पुसौर के गणमान्य व्यक्तियों में सूर्यदास महाणा का नाम पुसौर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है बहरहाल समाजसेवी दधिबाबन साव के मुताबिक कला संस्कृति व शिल्प की नगरी पुसौर में उनके पुर्वज दीनबंधु साव ने श्री बंधिया कंटलिया आदि के साथ मिलकर पुसौर सहित विश्वनाथपाली एकताल बाघाडोला सीहाउमरिया कोतासूरा भाठनपाली नेतनागर सोंड़ेकेला आदि स्थानों में कृतिवास रामायण वाल्मीकि रामायण बंगाली रामायण आदि के आधार पर रामलीला मंचन की शुरूआत कि थी वहीं कलागुरु दीनबंधु साव के सैकडों मुरीद थे कलाजगत में उनका नाम आदर से लिया जाता है।
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