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किताब ड्रेस पर शुरू हुआ कमीशनबाजी का नायाब खेल …

किताब ड्रेस पर शुरू हुआ कमीशनबाजी का खेल

निजी स्कूलों द्वारा अच्छी शिक्षा का मुखौटा पहनकर व्यापार व्यवसाई व्यवसाय चला रहे हैं कुछ एक संस्थान। नए सत्र की शुरुआत के पहले ही किताबों, यूनिफार्म व अन्य तमाम प्रकार की सामग्रियां खरीदने के लिए परिजनों पर दबाव डालने का खेल सोशल मिडिया से संस्थानों में शुरू हो गया है। स्कूल की शिक्षण सामग्री का व्यापार करने वाले लोगों द्वारा स्कूल संचालकों को मिल रहे बेहतरीन आॅफर के कारण अभिभावकों की जेब कांट रहे है। प्राइवेट स्कूलों ने शैक्षणिक सामग्री को इनकम का बेहतर जरिया बना लिया है।

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा एनसीईआरटी की किताबें चलाने के निर्देश के बावजूद प्राइवेट पब्लिशन की महंगी किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। बाजार की कीमत से भी कई गुने ज्यादा में सामग्रियां अभिभावकों को दिलाए जा रहे हैं। शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों को शैक्षणिक सामग्री की कालाबाजारी पर सख्त चेतावनी देने के बावजूद स्थिति पर अभी तक कोई सुधार होते नहीं दिख रहा है। इस गोरख धंधे में सीबीएसई स्कूल के साथ-साथ बोर्ड से संबंधित निजी स्कूलें भी शामिल हैं। जानकारों के मुताबिक एनसीईआरटी की किताबों में उपलब्ध पाठ्यक्रम कक्षा की पढ़ाई के हिसाब से पर्याप्त होता है और सबसे अधिक सारगर्भित और कम कीमत की किताबें एनसीईआरटी द्वारा ही प्रकाशित किए जाते हैं।

प्रति वर्ष बदल जाता है यूनीफार्म

(फाईल फोटो)

निजी स्कूल संचालक अभिभावकों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को दरकिनार करते हुए हर साल नई शैक्षणिक सामग्रियां खरीदने का दबाव बनाते हैं। जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई लगातार महंगी होते चले जा रहा है। कई स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं न होने के बावजूद भी काफी ज्यादा फीस वसूली जा रहा है। शासन के नियमानुसार खेल के मैदान,पेयजल व शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के बावजूद भी जिम्मेदारों के द्वारा निरीक्षण न होने के कारण स्कूल संचालकों के हौंसले बुलंद हैं।

12 महीने की वसूलते हैं फीस

स्कूल संचालकों द्वारा गर्मी की छुट्टियों को भी फीस लेने के दौरान नहीं छोड़ा जाता है। करीब दो महीने की इन छुट्टियों की फीस भी अभिभावकों द्वारा पहले से जमा करा लिया जाता है। इसके साथ ही एनुअल फीस के नाम पर भी हजारों रुपए स्कूलों द्वारा डकार लिए जाते हैं जबकि इन पैसों के एवज में बच्चों को कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं दिए जाते है। इतना ही नहीं बच्चों के साथ-साथ निजी स्कूल के शिक्षकों के साथ भी अन्याय करने से संचालक गुरेज नहीं करते हैं। बच्चों से बारह महीने की फीस वसूलने के बावजूद भी स्कूल संचालक कभी भी शिक्षकों को 12 महीने की तनख्वाह नहीं देते हैं।

कोई भी स्कूल री-एडमिशन की फीस नहीं ले सकता है। यदि कोई भी स्कूल संचालक री-एडमिशन के नाम पर फीस ले रहा है, तो उसकी जांच करा नियमानुसार कार्रवाई किया जाना चाहिए।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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