
नहरपाली—खरसिया विकास खण्ड के नहरपाली में बीते कुछ दिनों से जिस धरना-प्रदर्शन को जनआक्रोश का नाम दिया जा रहा था,वह असल में एक ‘स्क्रिप्टेड तमाशा’ निकला। विश्वसनीय सूत्रों और स्थानीय जनचर्चाओं के अनुसार, JSW कंपनी नहरपाली के कुछ ठेकेदारों और उनके गुर्गों ने इस पूरे घटनाक्रम को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया — जैसे किसी थ्रिलर फिल्म की पटकथा मंचित की जा रही हो।
दरअसल,पास के एक आलीशान होटल को इस पूरे षड्यंत्र का ऑपरेशन रूम बनाया गया था। यहीं से वे कथित सत्ता-परस्त ‘चिपकू‘ चेहरों के साथ मिलकर रणनीति तैयार करते रहे, जिनकी दिलचस्पी केवल एक चीज़ में थी — जनता की भावनाओं को भड़का कर राजनीतिक लाभ उठाना और विपक्षी दलों को कटघरे में खड़ा करना।
‘धरना‘ बना ड्रामा: जो कुछ दिन पहले तक आमजन की आवाज़ माना जा रहा था,वो अब कंपनी-संलग्न तत्वों द्वारा रचा गया ड्रामा साबित हो रहा है। विरोध के नाम पर किया गया यह आयोजन सिर्फ एक छलावा था — न नीयत साफ,न मकसद पारदर्शी।
स्थानीय लोगों की माने तो—
“हमें मुद्दों से भटका कर भीड़ में खड़ा कर दिया गया। अब लग रहा है कि हम मोहरे थे किसी बड़ी साजिश के खेल में।”
आंदोलन का हरण: धरने के दौरान उठाए गए मुद्दे न तो स्पष्ट थे,न ही समाधानोन्मुख। नतीजा वही निकला जो एक झूठी स्क्रिप्ट से निकल सकता है — शून्य!
बड़ा सवाल — कौन हैं असली मास्टरमाइंड?
किसके इशारे पर यह प्रायोजित आंदोलन खड़ा किया गया?क्या JSW प्रबंधन नहरपाली की इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका रही?और स्थानीय प्रशासन,जो मूकदर्शक बना रहा,क्या वह इस साजिश से अनभिज्ञ था?
अब जनता पूछ रही है:
“धरना-प्रदर्शन का नाम लेकर जनता को ठगा गया। क्या अब इन चेहरों का भी खुलासा होगा, जो पर्दे के पीछे बैठकर स्क्रिप्ट लिखते हैं?”
इस पूरे प्रकरण ने न सिर्फ एक आंदोलन की साख को गिराया है,जनआंदोलन की पवित्रता को आघात पहुंचाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि आज के दौर में जब तक जनता सतर्क न हो, तब तक उसकी आवाज़ भी ‘पैकेजिंग’ बन जाती है।
जवाबदेही तय होनी चाहिए। साजिशकर्ताओं की पहचान होनी चाहिए और जनता को उसका हक़ मिलना चाहिए — सच के साथ।
हमारी टीम प्रशासन, प्रदर्शनकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से संपर्क कर रही है। अगले भाग में खुलेंगे और परतें, और सामने आएंगे नए नाम। बने रहिए।