रायगढ़। अबीर तुम तो आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे पर आर्मी ऑफिसर बनने से बहुत पहले तुम सचमुच आर्मी ऑफिसर बन गए। मणिपुर में हुए आतंकी हमले में धुंआधार गोलियों की बौछार को झेलते तुमने जो शहादत दर्ज की है उसकी कोई दूसरी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। अबीर तुम्हारा नाम विश्व इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो चुका है। 6 साल की उम्र में शहादत दर्ज करने वाले तुम दुनिया के पहले बच्चे हो जिसने अचानक किये गए आतंकी हमले से जूझते हुए अपने माता-पिता के साथ प्राणोत्सर्ग किया। न तो तुम्हें यह देश भूल पाएगा और न ही दुनिया। तुमने जो अमरत्व प्राप्त किया है वह अलब्ध और अकल्पनीय है। तुम आर्मी ऑफिसर बनोगे यह सपना तो हमनें भी अपने आंखों में संजोया था यह जानते हुए भी कि जीते-जीते हम अपने इस सपने को साकार होते नहीं देख पाएंगे, शायद यही वजह होगी कि तुमने हमारे सपने को समय से बहुत पहले साकार कर दिया और हमें बता दिया कि मेरा नाम है अबीर।
6 नवंबर को जब हम रायगढ़ लौटने के लिए चूड़ाचांदपुर से इम्फाल जा रहे थे तब तुम्हारे और तुम्हारी दादी के बीच चूड़ाचांदपुर और रायगढ़ की तुलना करते हुए खूब झगड़ा होता रहा। तुमने चूड़ाचांदपुर को रायगढ़ से अच्छा बताने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रहने दी। शायद अपने मन के भीतर कहीं तुम यही चाहते थे कि हम मणिपुर में ही तुम्हारे साथ रूक जाएं लेकिन मेरी वजह से ऐसा नहीं हो सका था। मैं अब अपने जीवन के आखिरी सांस तक एक अपराधबोध से ग्रस्त रहूंगा। 7 नवंबर को जब हम वापस रायगढ़ पहुंचे, उसी दिन तुमने वीडियो कॉल करके मुझसे अपने पापा की शिकायत की कि उन्होंने तुम्हारे खाने के प्लेट से दो आलू चुरा लिए और मुझसे उन्हें डांटने के लिए कहा। तब मैंने मजाक में तुम्हारे पापा को डांटा लेकिन तुमने यह भी कहा कि दादू आप पापा को पनिशमेंट भी दीजिए कि अब वे पोस्ट पर न जाएं और मैंने तुम्हारे पापा को पोस्ट में जाने के लिए मना भी किया। 13 नवंबर को जब मुझे मेरे अपनों ने ही यह सूचना दी कि एक आतंकवादी हमले में तुम अपने पापा- मम्मा और 4 जवानों के साथ अपनी ईहलीला समाप्त कर चुके तो एक बारगी मैं विक्षिप्त सा हो गया और तब तक उस सूचना पर यकीन नहीं कर सका जब तक मैं अपना होशोहवाश खोया रहा।
अबीर आज मैं उस दृश्य की कल्पना मात्र से कांप जाता हूं और सोचता हूं 6 साल की मासूम सी उम्र में आतंकवादियों की बंदूकों से धुआंधार गोलियों की बौछार का सामना तुमने कैसे किया होगा। जरूर तुम्हारी चीख अपने मम्मा-पापा को लेकर निकली होगी। तुमने कहा होगा मेरे मम्मा-पापा को मत मारो पर तुम्हारी मासूम आवाज गोलियों की बौछार में गुम हो गई होगी। अबीर तुम तो रंग हो तुम कभी गुम हो ही नहीं सकते। रंग रहित जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मणिपुर में अपने लहू से तुमने जो इबारत वहां की मिट्टी में लिखी है उसे कभी नहीं मिटाया जा सकता। हो सकता है सरकारें तुम्हें शहीद या वीर बालक का दर्जा न दें लेकिन तुम्हारा नाम हजारों-लाखों की आत्मा में अंकित हो चुका है। जिसे कभी कोई नहीं मिटा सकता क्योंकि अबीर का अर्थ ही जीवन है।
सुभाष त्रिपाठी
(शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी के पिता
और शहीद अबीर के दादा)