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नर्सिंग पेशे को लेकर लोगों के नजरिए में आया बदलाव… मरीजों की देखभाल रहती है नर्सिंग स्टाफ के भरोसे

रायगढ़ ।

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लेडी विद द लैंप’ दीपक वाली महिला के नाम से विख्यात नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। भारत सरकार ने वर्ष 1973 में नर्सों के अनुकरणीय कार्यों को सम्मानित करने के लिए उन्हीं के नाम से ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ की स्थापना की, जो नर्स दिवस के अवसर पर प्रदान किए जाते हैं। फ्लोरेंस कहती थी कि रोगी का बुद्धिमान और मानवीय प्रबंधन ही संक्रमण के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव है।

इस दिवस के सम्बन्ध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एसएन केसरी बताते हैं: “कोरोना काल में दुनिया भर में करोड़ों लोगों का जीवन बचाने में नर्सों के सहयोग से ही सफलता मिली है। इसका श्रेय नर्सिंग कर्मियों को जाता है, जो स्वयं के संक्रमित होने के खतरे के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाने में जुटे रहे। 12 मई को मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस पर नर्सों के इसी योगदान को नमन करना जरूरी है। यह दिवस दया और सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्हें ‘आधुनिक नर्सिंग की जन्मदाता’ माना जाता है।”

मां और बच्चे दोनों की देखभाल से मिलता है सुकून- कमला पटेल

केजीएच के महिला एवं प्रसूति वार्ड की इंचार्ज नर्स कमला पटेल बीते 11 सालों से यहां सेवाएं दे रही हैं। केजीएच का महिला एवं प्रसूति वार्ड जिले का सबसे व्यस्ततम वार्ड रहता है। यहां आने वाले भीड़ अस्पताल के भरोसे को बताती है। भीड़ और क्षमता से अधिक मरीजों की देखभाल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। कमला कहती हैं: “ गर्भवती से लेकर शिशुवती महिलाएं हमारे वार्ड में आती है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी सजगता के साथ और बढ़ जाती है। दोनों को स्वास्थ्य सेवा देना सुकून देता है। सरकारी अस्पताल होने के कारण पूरे जिले से लोग आते हैं क्योंकि यहां जच्चा और बच्चा दोनों का इलाज और दवा मुफ्त है। फलस्वरूप सीमित बेड से कहीं अधिक मरीज आते हैं। कई दफे लोग हम पर चिल्लाते हैं पर हम अपने काम से जवाब देते हैं। जब मरीज और उसके तीमारदार यह देखते हैं कि विपरीत परिस्थिति के बावजूद हमने उनके मरीज की देखभाल बेहतर तरीके से की तो वह परिस्थिति समझते हैं और फिर सहयोग करते हैं। समय के साथ लोगों में नर्सिंग के पेशे के प्रति नजरिये में बदलाव आया था। बीता दो साल किसी भयावह सपने से कम नहीं था फिर भी हम सभी ने मिलकर उससे पार पाया। 5 और 10 साल के दो बच्चे हैं और पति निगम में काम करते हैं तो घर की जिम्मेदारी बढ़ जाती है

कोरोना काल परिजन चपटे मे आ गए, फिर भी नर्सिंग पेशे के साथ कभी समझौता नहीं किया। परिवार का हमेशा साथ मिला है।“

मां को देखकर नर्स बनी, गर्व है इस पर : अर्चना गुलाब
हमने 4,000 से अधिक लोगों का कोविड टेस्ट किया है। 200 से अधिक ऐसे मरीजों का इलाज किया है जो बाद में कोविड पॉजिटिव आए। आपातकाल विभाग (इमरजेंसी डिपार्टमेंट) की ड्यूटी सिखाती है कि हमें सभी का इलाज करना है, फिर चाहे वह कोविड पॉजिटिव हो या नेगेटिव, या फिर कोई और। इमरजेंसी में लाया मरीज गंभीर रहता है, कई बार ऐसा हुआ कि अगर हम पीपीई किट पहनने जाते तो शायद देर हो जाती और कई दफे पीपीई किट निकालने का मौका ही नहीं मिला, कई घंटे उसे पहनना पड़ता था। डेडिकेटेड कोविड अस्पताल जाने से पहले मरीज इमरजेंसी में ही आता है उसे ही हम रेफर करते हैं। किरोड़ीमल शासकीय चिकित्सालय (मेडिकल कॉलेज के अधीन) के इमरजेंसी विभाग की इंचार्ज नर्स अर्चना गुलाब जब यह बताती हैं तो उनकी आंखे गर्व से चमक उठती हैं। अर्चना उन गिनी-चुनी नर्सों में से एक हैं जो कोविड के समय में 24 घंटे ड्यूटी पररहीं, कोविड संक्रमित मरीज के आने के बाद पूरे अस्पताल को सैनेटाइज करना, रैपिड रेस्पांड टीम का हिस्सा होने के साथ ही साथ केजीएच अस्पताल में कोविड नियंत्रण की जिम्मेदारी उन पर ही होती थी। बाद में जब अस्पताल में टेस्टिंग लैब खोल दिया वह भी उन्हीं के हिस्से में आया।

34 साल की अर्चना ने 2008 में भिलाई से नर्सिंग की पढ़ाई पूरी की। नामी-गिरामी अस्पतालों में काम करने के बाद 2014 में केजीएच से जुड़ीं और 2015 से इमरजेंसीइंचार्ज बनी हुई हैं। एक उम्दा नर्स होने के साथ ही वह रायगढ़ जिले की मिस दिवा 2022 हैं और परसोना मिसेस इंडिया की प्रदेश से उम्मीदवार भी। 9 साल की बेटी की मां अर्चना कोरबा की रहने वाली हैं, उनके समर्पित कार्य के कारण बच्चे की परवरिश ननिहाल में ही हो रही है। अर्चना कहती हैं: “मेरी मां मेरी नर्स बनने की प्रेरणा हैं। वह एक बेहतरीन नर्स थीं। बचपन से मेरे मानस पटल पर उनकी सेवा और लोगों का उनके प्रति प्रेम ही छाया रहता था। लोगों की सेवा नर्सिंग क्षेत्र से बेहतर और कहां हो सकती है। इन्हीं के कारण मैं नर्स बनी और मुझे अपने काम पर गर्व है। बच्ची का चेहरा रोज न देख पाने का मलाल रहता है पर वह अपनी मां की जिम्मेदारियों को समझती है। कोविड ने सबके लिए नया था और उसने जो सीख दी वह ताउम्र याद रहेगी“

हम पर बढ़ा है लोगों का भरोसा: कल्पना
लोईंग सीएचसी में बीते 8 साल से स्टाफ नर्स कल्पना केरकेट्टा ग्रामीण अंचल और ओडिसा बॉर्डर पर कोविड संक्रमण की रोकथाम में महती भूमिका निभाई है। लोईंग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ कल्पना उस समय को याद कर सिहर उठती हैं कि दो साल पहले जब कोरोना के शुरुआती केस आ रहे थे और लोईंग में क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया था तब हमारे पास न तो दवा थी और न ही कोई उपचार। मरीज डरे हुए थे और हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। कई रात ऐसी ही निकली, फिर हालात समय के साथ सुधरे। कोविड की दूसरी लहर में हम पूरी तरह से तैयार थे। वैक्सीनेशन बेहतर तो था ही साथ ही लोगों में कोविड संक्रमण से बचाव की जागरुकता भी आ गई थी। लोईंग में स्वास्थ्य सुविधाओं की बढ़ोत्तरी हुई। जहां पहले संस्थागत प्रसव के लिए लोग आनाकानी करते थे वह अब आसानी से आ रहे हैं। हम पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। अब हर मरीने तकरीबन 10 सामान्य प्रसव होते हैं। कोविड के समय के कार्य को लोगों ने देखा और उसके बाद से उनकी नजरों में सम्मान बढ़ा है। कोविड के नए वैरियंट से लोग सावधान रहे हैं और मास्क जरूर पहनें।“

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