
गिरीश राठिया @राबर्टशन।राज्य सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावों की पोल एक बार फिर खुल गई है। खरसिया विकासखंड के के ग्राम चपले स्थित स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल में शिक्षा सत्र 16 जून से आरंभ हो चुका है, लेकिन आज तक छात्रों को किताबें उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। यह लापरवाही न सिर्फ स्कूल प्रबंधन की अक्षमता को दर्शाती है, बल्कि पूरे शिक्षा विभाग और सरकार की उदासीनता की भी पोल खोलती है।
बगैर किताबों के पढ़ाई करवाने की यह व्यवस्था बच्चों के भविष्य के साथ खुला खिलवाड़ है। शिक्षक भी पाठ्यक्रम को समय पर पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिससे बच्चों की शिक्षा पर सीधा असर पड़ रहा है। चिंता का विषय यह है कि ऐसे अत्यधिक प्रचारित सरकारी स्कूलों में इस तरह की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी हो रही है।

शांत,सहज,सरल व्यवहार के लिए जाने और पहचाने जाने वाले धाकड़ कांग्रेसी युवा नेता, पूर्व जनपद उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार पटेल ने सरकार और शिक्षा विभाग पर निशाना साधते हुए कहा कि “यह सरकार की नाकामी है कि डेढ़ महीने से ऊपर हो चुके हैं, फिर भी किताबें नहीं पहुंची। अगर अगले सात दिनों में किताबें नहीं दी गईं, तो हम कांग्रेस जनों द्वारा स्कूल के सामने जोरदार आंदोलन करेंगे।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह सिर्फ चपले की नहीं, बल्कि पूरे राज्य की समस्या बनती जा रही है, जहाँ सरकार योजनाओं का प्रचार तो करती है लेकिन ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन फेल साबित हो रहा है।
स्थानीय अभिभावकों में भी इस मुद्दे को लेकर भारी नाराजगी है। उनका कहना है कि सरकार से उम्मीद थी कि आत्मानंद स्कूल जैसे मॉडल स्कूलों में शिक्षा का स्तर बेहतर होगा, लेकिन अब लग रहा है कि यह भी सिर्फ एक दिखावा है।
सवाल उठता है:
- जब सरकार करोड़ों रुपए विज्ञापनों में खर्च कर सकती है, तो बच्चों के लिए समय पर किताबें क्यों नहीं उपलब्ध करा पा रही है?
- क्या सरकारी स्कूलों की इस स्थिति के लिए कोई जवाबदेह होगा?
यह मामला केवल किताबों का नहीं, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न है। यदि जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य में शिक्षा व्यवस्था का भरोसा टूटना तय है।




