कितनी मुश्किल है पुलिस की जिंदगी एक दिन जी कर तो देखो… थकने नहीं देता वर्दी का फर्ज
खाकी वर्दी वाले के लिए न तो कोई संडे होता है। न होली दिवाली दशहरा गुरुपर्व ईद। पुलिस जवान से लेकर अधिकारी तक किसी त्योहार में परिवार के साथ शरीक होने का वादा तक नहीं कर सकते।
माना कि है पुलिस बुरी,पर बिना पुलिस के रहकर देखो। रोकेंगे हर राह दरिंदे, बिना पुलिस के चलकर देखो। कोई नहीं समय सीमा है, कोई नहीं ठिकाना है, जहां-जहां भी पड़े जरूरत, वहां-वहां भी जाना है। यह पंक्तियां हरिवंश राय बच्चन की कविता की हैं। जरा एक बार सोचो अगर पुलिस न होती तो क्या होता। पुलिस की जिंदगी कितनी मुश्किल भरी है एक दिन जी कर तो देखो। हम आपको पुलिस की जिंदगी के बारे में बताने की कोशिश कर रहे हैं।
खाकी पहनकर पुलिस विभाग ज्वाइन करना मात्र एक ड्यूटी नहीं बल्कि एक अलग दुनिया और जिंदगी है। वर्दी पहनने के बाद पुलिस जवान की लोगों के लिए खुद ब खुद ही जिम्मेदारी तय हो जाती है। समाज में अपराध को रोकना, आपराधियों को पकड़ना, समाज सुधार,लोगों के पारिवारिक मसले, किसी के घर में बीमार होने वाले सदस्य तक के लिए एक पुलिस कर्मचारी का जिम्मा बनता है। पुलिस कर्मियों के उत्पीड़न की कहानी कोई नहीं है।
खाकी पहनने के बाद ज्यादातर महिला और पुरुष पुलिस कर्मी सहित अफसर तक कहीं न कहीं मानसिक रूप से यातनाएं झेल रहे होते हैं। खाकी की ड्यूटी के लिए नियम तो हैं लेकिन वो परिस्थितियों वस कागजों पर ही सिमट जाते हैं। वैसे,नियमानुसार ड्यूटी आठ घंटे की होती है, लेकिन एक जिम्मेदारी और लोगों के लिए सुरक्षित माहौल,धरना-प्रदर्शन, केस साल्व सहित अन्य मामलों में जुड़कर औसतन 12 से 13 घंटे की ड्यूटी देनी पड़ जाती है। कई बार तो भूखे प्यासे 24 से 48 से घंटे की ड्यूटी भी करनी पड़ती है। शरीर जबाव दे जाता है लेकिन वर्दी का फर्ज थकने नहीं देता।
त्योहार, पारिवारिक समारोह में पहुंचने का वादा नहीं कर पाते, रिश्तेदार और दोस्त भी नाराज…
खाकी वर्दी वाले के लिए न तो कोई संडे होता है। न होली, दिवाली, दशहरा, गुरुपर्व, ईद। पुलिस जवान से लेकर अधिकारी तक किसी त्योहार में परिवार के साथ शरीक होने का वादा तक नहीं कर सकते। क्योंकि उन्हें हमेशा यह लगा रहता है कि न जाने कौन सी घड़ी में कहां जाना पड़ जाए। पुलिस वालों को तो न ही सुबह की खबर होती है और न ही शाम की। न सर्दी की ठिठुरन में आराम करने को मिलता है और न ही गर्मी। उनका कोई स्थानीय पता है तो वह है बस थाना या चौकी जहां वह अपनी ड्यूटी करते हैं। ड्यूटी के दौरान रिश्तेदारों और दोस्तों को भी समय नहीं दे पाते हैं। कॉल नहीं करने और उनके समारोह में शामिल नहीं होने का हवाला देकर नाराज ही रह जाते हैं।
जिंदा के साथ मुर्दों की रक्षा में भी तैनाती, दंगा, प्रदर्शन और आपदा में भी आन ड्यूटी
पुलिस विभाग के जिम्मेदार बताते हैं कि पुलिस की ड्यूटी आसान नहीं है। मुश्किल ड्यूटी के साथ लोगों के लिए एक अलग फर्ज भी निभाना पड़ता है। उनकी ड्यूटी में जिंदा लोगों की सुरक्षा के साथ कई बार मुर्दों की रक्षा में जुटना पड़ता है। पुलिस वाले कोरोना काल ,दंगा, प्रदर्शन, आपदा में भी कई बार चोटिल भी हो जाते हैं, कोरोना काल मे अपने अपनो को खोया इसके बावजूद फर्ज पर डटे रहते है।
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