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किसानों के साथ बातचीत के बाद कृषि मंत्री का पहला बयान, कहा- “चर्चा का माहौल अच्छा था लेकिन…”

नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों पर सातवें राउंड की बातचीत भी बेनतीजा रही। हालांकि, किसान नेताओं के साथ बैठक खत्म होने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों को सरकार पर भरोसा है इसीलिए वह 8 जनवरी को अगले दौर की बैठक के लिए तैयार हो गए हैं। बता दें कि अब किसानों और केंद्र सरकार के बीच 8 जनवरी को आठवें दौर की बातचीत होनी है।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आज की बैठक के बारे में कहा, “चर्चा का माहौल अच्छा था परन्तु किसान नेताओं के कृषि क़ानूनों की वापसी पर अड़े रहने के कारण कोई रास्ता नहीं बन पाया।” तोमर ने कहा, “चर्चा जिस हिसाब से चल रही है, किसानों की मान्यता है कि सरकार इसका रास्ता ढूंढे और आंदोलन समाप्त करने का मौका दे।”

नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, “हम चाहते थे कि किसान यूनियनें तीनों कानूनों पर क्लॉज वाइज खण्ड वार) चर्चा करें। हम किसी भी समाधान तक नहीं पहुंच सके क्योंकि किसान यूनियन कानूनों को निरस्त करने पर अड़े रहे।” तोमर ने कहा, “आज की चर्चा को देखते हुए मुझे आशा है कि अगली बैठक के दौरान सार्थक चर्चा होगी और हम निष्कर्ष पर पहुंचेंगे”

तोमर ने कहा, “हम चाहते हैं कि किसान यूनियन की तरफ से वो विषय आए जिस विषय में किसान को कोई परेशानी होने वाली है, उस विषय पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है।” उन्होंने कहा, “सरकार देशभर के किसानों के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार जो भी निर्णय करेगी, सारे देश को ध्यान में रखकर ही करेगी।”

वहीं, सरकार के साथ किसान नेताओं की मुलाकात के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, “8 तारीख 8 जनवरी 2021) को सरकार के साथ फिर से मुलाकात होगी। तीनों कृषि क़ानूनों को वापिस लेने और MSP, दोनों मुद्दों पर 8 तारीख को फिर से बात होगी। हमने बता दिया है क़ानून वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं।”

एक अन्य किसान नेता ने कहा, “हमने सरकार को बताया कि पहले कृषि क़ानूनों को वापिस किया जाए, MSP पर बात बाद में करेंगे। 8 तारीख तक का समय सरकार ने मांगा है। उन्होंने कहा कि 8 तारीख को हम सोचकर आएंगे कि ये क़ानून वापिस हम कैसे कर सकते हैं, इसकी प्रक्रिया क्या हो।”

किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, “सरकार को यह बात समझ आ गई है कि किसान संगठन कृषि क़ानूनों को रद्द किए बिना कोई बात नहीं करना चाहते हैं। हमसे पूछा गया कि क्या आप क़ानून को रद्द किए बिना नहीं मानेंगे, हमने कहा हम नहीं मानेंगे।”

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