भारत कोयला खनन उत्पादन और प्रदूषण फैलाने वाली प्रक्रियाओं के रणनीतिक चरणबद्ध समापन में संतुलन स्थाापित कर रहा है
आत्मनिर्भर भारत,पर्यावरण अनुकूल भविष्य
भारत अपने यहां कोयला खनन उत्पादन को बढ़ाने और कोयला खनन से जुड़ी प्रदूषण फैलाने वाली प्रक्रियाओं के रणनीतिक चरणबद्ध समापन में उचित संतुलन प्रभावकारी ढंग से सुनिश्चित कर रहा है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है।
छत्तीसगढ़ स्थित कोल इंडिया की सहायक कंपनी साउथईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की गेवरा और कुसमुंडा कोयला खदानों ने वर्ल्डएटलस डॉट कॉम द्वारा जारी दुनिया की 10 सबसे बड़ी कोयला खदानों की सूची में दूसरा और चौथा स्थान हासिल किया है।
ये दोनों खदानें, जिनमें से प्रत्येक सालाना 100 मिलियन टन से भी अधिक कोयला उत्पादित करती हैं और भारत के कुल कोयला उत्पादन में जिनकी लगभग 10% हिस्सेदारी है, दुनिया की कुछ सबसे बड़ी और सबसे उन्नत खनन मशीनों का उपयोग करती हैं। विशेष रूप से उनमें ‘सरफेस माइनर’ का उपयोग किया जाता है, जो एक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी है और जो विस्फोट के बिना ही कोयले को निकालती है और उसका प्रसंस्करण करती है, जिससे पर्यावरण अनुकूल खनन कार्यों को बढ़ावा मिलता है।
आर्थिक विकास के लिए कोयला खनन एक बड़ा बूस्टर है
निरंतर निवेश और आधुनिक तकनीकों पर जोर देने के परिणामस्वरूप भारत में कोयला उत्पादन वर्ष 2022-23 में बढ़कर 893.19 मिलियन टन हो गया। 2023-24 में कोयला उत्पादन बढ़कर 997.25 मिलियन टन हो गया, जिससे 11.65% की वृद्धि हुई। व्यापक अध्ययनों से यह अनुमान लगाया गया है कि कोयले की मांग वर्ष 2030 में संभवतः 1462 एमटी और वर्ष 2047 तक 1755 एमटी के स्तर पर पहुंच जाएगी।
कोयला खनन क्षेत्र देश में कोयला उत्पादक राज्यों में आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा बूस्टर साबित हुआ है। राज्य सरकारें कोयले के बिक्री मूल्य पर 14% रॉयल्टी प्राप्त करने की हकदार हैं। कैप्टिव/वाणिज्यिक खदानों के मामले में राज्य सरकारें पारदर्शी बोली प्रक्रिया में नीलामी धारक द्वारा प्रस्तावित राजस्व हिस्सेदारी को प्राप्त करने की भी हकदार हैं।
इसके अलावा, राज्य सरकारें रोजगार में वृद्धि, भूमि मुआवजा, रेलवे, सड़क जैसी संबद्ध अवसंरचना में निवेश में वृद्धि और कई अन्य आर्थिक लाभों से भी लाभान्वित होती हैं।
बढ़ती अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला उत्पादन बढ़ाने पर केन्द्र सरकार के फोकस से राज्य सरकारों को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त करने में प्रत्यक्ष रूप से मदद मिली है जिसके परिणामस्वरूप कोयला उत्पादक क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय को बढ़ावा मिला है, जिससे अवसंरचना और सामाजिक क्षेत्र दोनों में ही विकास हुआ है।
कोयला खदानों में स्थिरता
खनन उद्योग लंबे समय से व्यापक पर्यावरणीय गिरावट और संसाधनों की कमी से जुड़ा रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में हरित खनन की अवधारणा सतत भविष्य के लिए आशा की किरण के रूप में उभर कर सामने आई है।
हरित खनन से सतत भविष्य का मार्ग प्रशस्त हुआ
हरित खनन का तात्पर्य खनन उद्योग में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों को लागू करना है, ताकि इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना, खदान अपशिष्टों का पुनर्चक्रण करना, पानी की खपत को कम-से-कम करना और टिकाऊ निष्कर्षण तकनीकों को अपनाना शामिल है।
हरित खनन को अपनाने का लक्ष्य उद्योग के कार्बन उत्सर्जन को कम करना और जिम्मेदार खनन को बढ़ावा देना है। पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए कोयला खनन क्षेत्रों में कोयला/लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा अपनाए जा रहे पर्यावरण संरक्षण उपायों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है:
1. वायु गुणवत्ता का प्रबंधन
कोयला खदानों में प्रभावकारी वायु गुणवत्ता प्रबंधन श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा और टिकाऊ खनन संचालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। कोयला खनन गतिविधियों से अक्सर धूल और उत्सर्जन उत्पन्न होता है जो खदान के अंदर और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन की मजबूत प्रथाओं को लागू करने से धूल के स्तर को नियंत्रित करके, उत्सर्जन की निगरानी करके और प्रदूषण को कम करने के लिए तकनीकों का उपयोग करके इन प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
Fig. Mist Gun operation to control dust
Fig. PM 10 Analyser in CCL
Fig. Surface Miner with water jets, Gevra OCP, SECL
Fig. Mobile sprinklers in operation for suppression of dust
2. खदान बंद करना, जैव-पुनर्ग्रहण और भूमि उपयोग का प्रबंधन
खदान बंद करना, जैव-पुनर्ग्रहण और भूमि उपयोग का प्रबंधन उत्तरदायी कोयला खनन प्रथाओं के महत्वपूर्ण घटक हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना और सतत भूमि उपयोग को बढ़ावा देना है। जब कोई कोयला खदान अपने परिचालन काल के समापन पर पहुंच जाती है, तो उसे बंद करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उस स्थान का सुरक्षित और प्रभावकारी ढंग से पुनर्वास हो सके।
कोयला क्षेत्र का आर्थिक महत्व ऊर्जा उत्पादन से परे है
रेलवे माल ढुलाई में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है
रेलवे माल ढुलाई में कोयले का सबसे बड़ा योगदान है, जिसकी औसत हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022-23 में 82,275 करोड़ रुपये की कुल माल ढुलाई आय में लगभग 49% है। यह राजस्व योगदान कुल रेलवे आय का 33% से अधिक हो गया है, जो भारत के परिवहन नेटवर्क पर इस क्षेत्र के व्यापक प्रभाव को दर्शाता है।