11वीं शताब्दी में बना भोरमदेव मंदिर की मान्यता काफी अलग, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं भक्त…
जहां सावन के महीने में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है और जिसका नाम है भोरमदेव। यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में कवर्धा से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भोरमदेव मंदिर कोई एकलौता मंदिर नहीं है बल्कि यह एक परिषद है जिसके अंतर्गत 4 हिंदू मंदिर आते हैं।
इतिहास के पन्ने को झांक कर देखा जाए तो इसका निर्माण नागवंशी राजा द्वारा 7वीं शताब्दी से 10वीं शताब्दी तक कराया गया था। इसे एक व्यक्ति ने बनाया था और कहा जाता है कि वह भी अंत में पत्थर का हो गया था। भोरमदेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां के नागवंशी राजा गोपाल देव ने इस मंदिर को एक रात में बनवाने का आदेश दिया था। किवदंती है कि उस समय रात 6 महीने और दिन भी 6 महीने का होता था। कहा जाता है कि राजा के आदेश के बाद ये मंदिर एक रात में ही बनकर तैयार हो गया था।
खजुराहो के मंदिरों जैसी है बनावट
बता दें कि छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में आने वाला भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो नाम से जाना जाता है। यह मंदिर करीब हजार साल पुराना है। इस मंदिर की बनावट भी काफी अनोखी है। इसे खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की तरह बनाया गया है। इस मंदिर के मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर की दीवारों पर भी मूर्तियां बनी हुई हैं।
जिले की धरोहरों में शामिल
भोरमदेव कवर्धा जिले में विरासत के रूप में भोरमदेव मंदिर शामिल है। मंदिर की मूर्तियां नागरशैली में बनी हैं। जिसकी एक एक मूर्ति लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिर का निर्माण एक हजार साल से पहले कराया गया था। इतने सालों बाद भी यह मंदिर आज भी पूरी मजबूती के साथ खड़ा है। इसे सहेजकर रखने की जरूरत है। क्योंकि यह जिले के लिए दुर्लभ धरोहरों में से एक है।
इतना ही नहीं जानकारी के मुताबिक इस मंदिर को लेकर एक किंवदंती भी प्रचलित है। मान्यता है कि यहां के राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि नागवंशी राजा गोपाल देव ने इस मंदिर को एक रात में बनाने का आदेश दिया था। उस समय 6 महीने की रात और 6 महीने का दिन होता था। राजा के आदेशानुसार इस मंदिर को एक रात में बनाया गया था. हालांकि कई लोग इन्हें सिर्फ कहानियां बताते हैं। लेकिन कुछ लोगों का इस किदवंती में विश्वास है।