आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
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वसुदेव जी, बालकृष्ण को चुपके से नन्द-भवन में पहुँचा कर वापस मथुरा की जेल में आ गए। उधर गोकुल में नन्द बाबा के घर बधाइयाँ बजने लगी। बुढ़ापे में पुत्र प्राप्त कर नंदबाबा की खुशी का ठिकाना न रहा।
आहूय विप्रान वेदज्ञान स्नात: शुचिरलंकृत;।
ब्राह्मणों को बुलावा भेजा गया। महाराज जल्दी चलो नंदबाबा के घर लाला को जनम भयो है। ब्राह्मण देव अति प्रसन्न हुए दौड़कर यमुना में स्नान किए तिलक चन्दन लगाकर पोथी पतरा काँख में दबाकर सब ब्राह्मण दौड़े नंदभवन पहुँचे और उच्च स्वर में स्वस्तिवाचन बोलना शुरू कर दिया।
शुकदेव जी कहते हैं-परीक्षित उस दिन से नंदबाबा के व्रज में सब प्रकार की सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगी वहाँ श्री कृष्ण के साथ-साथ लक्ष्मीजी का भी निवास हो गया।
पूतना-वध
नंदबाबा कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए मथुरा गए हुए थे। वहाँ वासुदेव से उनकी मुलाक़ात हुई। वासुदेव के हृदय में पुत्र वियोग का शोक है परंतु वे नंदबाबा के आनंद की चर्चा कर रहे हैं। नंदबाबा के हृदय में पुत्र जन्म का आनंद है पर वे वासुदेव के शोक में सम्मिलित हो रहे हैं। शुद्ध मैतृ यही है। तुलसी बाबा ने कहा-
निज दुख गिरि सम रज कण जाना, मित्रहि दुख रज मेरु समाना
जे न मित्र दुख होहि दुखारी, तिनहि बिलोकत पातक भारी॥
एक सच्चे मित्र को चाहिए कि अपना दुख पहाड़ के समान हो तो भी उसे छिपाकर रखें और अपने मित्र का दुख यदि धूल के कण के बराबर अत्यंत छोटा हो, तो भी उसे बहुत बड़ा समझकर उसका निदान करे। दोनों नन्द और वासुदेव अपने-अपने सुख-दुख की चर्चा कर रहे हैं। वासुदेव को लाला (कृष्ण) की चिंता पड़ी है, इसलिए तुरंत बोले उठे नन्द बाबा मैं ज्योतिष का प्रकांड पंडित हूँ। मेरी ज्योतिष विद्या बता रही है कि तुम्हारे ग्रह-दशा ठीक नहीं चल रहे हैं।
बहुत जल्दी ही गोकुल में उत्पात होने वाला है। अब तू इधर-उधर कहीं मत जाओ। सीधे जाकर अपना गोकुल संभाल। यह सुनते ही नन्दबाबा की धड़कन तेज हो गई, तुरंत लाठी टेकते-टेकते गोकुल की तरफ भागे। हे भगवान मेरे लाला की रक्षा करो ऐसी प्रार्थना करते हुए नन्दबाबा घर पहुँचे, लेकिन यह क्या? उनके पहुँचने के पहले ही घर पर पूतना मौसी पहुँच गई।
कंस ने पूतना नाम की एक राक्षसी को गोकुल में उत्पन्न हुए सभी नवजात शिशुओं को मारने के लिए भेजा था….