देश /विदेश

48 साल पहले मारे गए अपने सैन्य अधिकारी को नहीं ले गया पाकिस्तान, भारतीय सेना ने उसे दिया खास सम्मान

नई दिल्ली: ‘सैनिक’ चाहे किसी भी देश का हो, वह अपने देश के लिए सम्मानीय होता है। अपने देश की खातिर वह लड़ते हुए कई बार शहीद भी होता है, लेकिन ऐसा कम ही होता है कि किसी एक देश के सैनिक को दूसरे देश में बाकयदा सम्मान मिले। आप कहेंगे, ऐसा कहां होता है? तो आपको बता दें, भारत में ऐसा भी होता है! जी हां, भारतीय सेना ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के नौगाम सेक्टर में मौजूद एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की कब्र की मरम्मत की है।

श्रीनगर की चिनार कमान (Chinar Corps) ने कब्र की तस्वीर ट्विटर पर साझा कर लिखा है, सितार-ए-जुर्रत मेजर मोहम्मद शबीर खान की याद में, जिनका इंतकाल पांच मई 1972, हिजरी संवत 1630 में नौ सिख की जवाबी कार्रवाई में हुआ। सेना ने कहा कि शहीद सैनिक चाहे वह किसी भी देश का हो, मौत के बाद सम्मान और आदर का हकदार है और भारतीय सेना इस विश्वास के साथ खड़ी है। यह भारतीय सेना द्वारा दुनिया को संदेश है।

चिनार कमान ने लिखा- ‘भारतीय सेना की परंपराओं और प्रकृति को ध्यान में रखते हुए चिनार कोर ने पाकिस्तान सेना के सितार-ए-जुर्रत मेजर मोहम्मद शब्बीर खान की क्षतिग्रस्त कब्र को फिर से ठीक किया जो 5 नवंबर, 1972 को नौगाम सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास एक सैन्य कार्रवाई में मारे गए थे।

युद्ध में घायल सैनिकों के लिए ये समझौता

युद्ध में सैनिकों और आम जनता की बुरी हालत को ध्यान में रखकर कई समझौते हुए हैं। उनमें से एक जेनेवा समझौता है। युद्ध के दौरान ‘मानवता’ को बरकरार रखने के लिए पहला समझौता 1864 में हुआ था, दूसरा 1906 और तीसरा 1929, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथे समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें कहा गया है कि जेनेवा समझौते के तहत घायल सैनिक की उचित देख-रेख की जाएगी।

दरअसल, जेनेवा कन्वेंशन की चर्चा सोलफेरिनो युद्ध के दौरान हुई थी। मुख्यतः लड़ाई फ्रांस व ऑस्ट्रिया के बीच 1859 में हुई थी। इस युद्ध का नेतृत्व फ्रांस की तरफ से नेपोलियन तृतीय कर रहे थे। रेडक्रॉस के संस्थापक हेनरी डूरेंट ने जब युद्ध स्थल का दौरा किया तो इस रक्तपात को देखकर उनका हृदय विचलित हो उठा जिससे बाद ही उन्होंने रेडक्रॉस नामक संगठन की स्थापना की थी। इस अच्छे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही जेनेवा में अन्य यूरोपीय देशों की बैठक हुई। इसका मुख्य उद्देश्य यह रखा की युद्ध में इतनी क्रूरता ना बरती जाए कि इंसानियत व मानवाधिकार को शर्मसार होना पड़े।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी। इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं। साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है। जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए।

इस संधि के तहत युद्ध के बंदी सैनिकों को खाना-पीना और सभी जरूरी चीजें उपलब्ध कराई जाएगी। किसी भी युद्धबंदी को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है, वह जेनेवा समझौते के अंतर्गत आ जाता है। युद्धबंदी को डराया-धमकाया नहीं जा सकता। युद्धबंदी से उसकी जाति, धर्म, जन्म आदि के बारे में नहीं पूछा जा सकता।

हालांकि जेनेवा समझौते में मृत सैनिकों को लेकर कोई खास व्यवस्था नहीं दी गई है, फिर भी सेना दुश्मन देशों के सैनिकों के शवों को भी सम्मान के साथ वापस करती हैं या रीति-रिवाज के हिसाब से अंतिम क्रिया करती हैं। कारगिल युद्ध के दौरान जब पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों के शवों को लेने से इनकार कर दिया था, तो भारतीय सेना ने उन शवों का अंतिम संस्कार किया था।

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!