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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के संदर्भ में : शशांक शर्मा

 उपभोक्ता हितों के रक्षण के लिए सामयिक परिवर्तन

उदारीकृत अर्थव्यवस्था में बाज़ार की दिशा उपभोक्ता तय करते हैं, किन्तु बाज़ार के उत्पादों की गुणवत्ता और कीमत अगर उपभोक्ता को छलने लगे तो यह अविश्वास आर्थिक पहियों की गति को मंद कर सकता है । पिछले दो दशकों से बाज़ार में उपभोक्ताओं को लुभाने के माध्यम बढ़े हैं वहीं क्रय-विक्रय की प्रक्रिया में भी तकनीक का इस्तेमाल होने लगा है । अब तो ऑनलाइन व्यापार के चलते क्रेता-विक्रेता का प्रत्यक्ष कोई संपर्क नहीं होता जिससे उपभोक्ता के ठगे जाने की संभावना अधिक रहती है । ऐसी स्थिति में 1986 में बने उपभोक्ता संरक्षण कानून में समयानुकूल परिवर्तन आवश्यक था । व्यापक संशोधन के साथ गत वर्ष अगस्त माह में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 को संसद ने पारित कर दिया था, जिसे 20 जुलाई से पूरे देश में लागू कर दिया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में सबसे बड़ा बदलाव उत्पाद की जिम्मेदारी (प्रोडक्ट लायबिलिटी) को परिभाषित करना है । अधिनियम में ‘उत्पाद की जिम्मेदारी’ का अर्थ है, उत्पाद के निर्माता ,सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) या विक्रेता की जिम्मेदारी । यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या दोषी सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिए उपभोक्ता को मुआवजा दे । मुआवजे का दावा करने के लिए उपभोक्ता को बिल में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा । इस प्रकार सेवा क्षेत्र को भी उपभोक्ता कानून की परिधि में लाया गया है, जिसमें शैक्षणिक, स्वास्थ्य, कोरियर, टेलीकॉम जैसी सेवाएं शामिल हैं । अब परिभाषा के अनुसार, उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है । इसके अंतर्गत इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल है।

उपभोक्ता संरक्षण के पिछले कानून में आमूलचूल परिवर्तन किया गया है, राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर संगठनों के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं । उपभोक्ताओं को यह राहत दी गई है कि वे किसी कंपनी या व्यापारी के खिलाफ शिकायत अपने निवास करने के स्थान से कर सकेंगे और अपनी शिकायत ऑनलाइन भी दायर कर सकेंगे । 1986 के कानून के मुताबिक विरोधी पक्ष के स्थान में शिकायत दर्ज की जा सकती थी । इसी प्रकार जिला फोरम में पारित आदेश को राज्य स्तर पर अपील करने के बहाने प्रकरणों को लम्बा खींचने और पीडि़त उपभोक्ता को प्रताडि़त करने का प्रयास किया जाता था । नए कानून में किसी कंपनी या व्यापारी को अपील करनी हो तो भुगतान करने के आदेश की राशि का पचास प्रतिशत उसे राज्य आयोग में जमा कराना होगा । इस व्यवस्था से बेवजह अपील में जाने की प्रवृत्ति कम होगी और उपभोक्ता को संरक्षण मिलेगा।

उपभोक्ता संरक्षण के नए कानून में उपभोक्ता और निर्माता-विक्रेता के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का भी मार्ग सुझाया गया है । यह पूरी दुनिया में वाणिज्यिक विवादों के निपटान का सशक्त तरीका है, जिसमें दोनों पक्षों को तर्कसंगत मध्यममार्गीय समाधान के प्रयास एक मध्यस्थ करने वाले विशेषज्ञ करते हैं, इससे प्रकरणों का निपटारा शीघ्रता से होगा । नए कानून में सबसे महत्वपूर्ण व समयानुकूल बदलाव ई कॉमर्स के उपभोक्ताओं को भी शामिल करना है । पिछले दशक में ई कॉमर्स एक सशक्त बाज़ार के रूप में उभरा है जिसमें भौगोलिक सीमा का बंधन नहीं है और उपभोक्ता घर बैठे किसी उत्पाद को खरीद सकता है । इस इंटरनेट संबंधी बाजार में भी उपभोक्ता कई प्रकार से ठगे जा रहे हैं ।

एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2016 से नवंबर 2019 के बीच ऑनलाइन खरीदी में 14,000 ठगी की शिकायतें मिलीं, लेकिन इस अदृश्य बाजार में दोषी को पकडऩा और दंडित करना दुष्कर कार्य है । इस कारण नए उपभोक्ता कानून में ई कॉमर्स में रत् कंपनियों के लिए भी नियम बनाए गए हैं, जिससे उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित हो सकें ।

उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती उन उत्पाद निर्माता या व्यापारियों से है जो जानबूझकर लाभ कमाने के लिए अनैतिक व्यापार करते हैं, इसमें किसी उत्पाद का मिथ्या प्रचार कर उपभोक्ताओं को भ्रमित करना भी शामिल है। कई बार तो समाज के आदर्श माने जाने वाले लोकप्रिय व्यक्तित्वों का भी उपयोग करते हैं । ऐसे प्रकरणों में अगर उपभोक्ता ठगा गया या विज्ञापन के दावों अनुसार उसे खरीदे गए उत्पाद से वे लाभ नहीं मिले, तो ऐसे प्रकरणों के प्रभावी निपटान के लिए कोई प्रावधान नहीं था ।

नए कानून में केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन का प्रावधान है, जिसका दायित्व होगा कि वह उपभोक्ता हित के लिए किसी भी प्रकार के व्यापारिक गतिविधियों की जांच करवा दोषियों को दण्डित कर सकते हैं । इस प्राधिकरण के जरिए किसी राज्य या जिला स्तर पर हो रहे उपभोक्ता अहित के मामलों की जांच जि़ला कलेक्टर के माध्यम से करवाने का प्रावधान है। भ्रामक विज्ञापन करने के दोषी पाए जाने पर किसी उत्पादक या प्रचारक पर दस लाख का जुर्माना और दो साल तक की कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है ।

उपभोक्ताओं को अपने पैसे के मूल्य की वस्तु व सेवाएं मिल सके, यह सरकार का दायित्व भी है। इसके लिए कड़ा कानून आवश्यक था जिससे अनैतिक व उपभोक्ताओं का अहित करने वाले सतर्क हों, अहित करने पर शीघ्रता से दण्ड मिले, उपभोक्ता को न्याय मिले । साथ में उत्पादकों व व्यापारियों के लिए नियामक संस्था समय की मांग थी जो बाज़ार व्यवस्था की चौकसी करे। इन्हीं उद्देश्यों के साथ उपभोक्ता कानून को लागू किया गया है। लेकिन कानून का लाभ उपभोक्ताओं जो तभी मिलता है जब वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और न्याय पाने के लिए सजग रहते हैं।

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