जो अपने में परिवर्तन ले आएगा वह उनके नजदीक पहुँचता जायेगा
जो अपने में परिवर्तन ले आएगा वह उनके नजदीक पहुँचता जायेगा
यदि हमें कुछ प्राप्त करना है, उस अध्यात्म को प्राप्त करना है और यदि हममें भक्ति है, श्रद्धा है, तो हमें अपने में रहना होगा, अपने से हमें करना होगा, अपने में सुधार लाना होगा, अपने में परिवर्तन लाना होगा। यदि हम अपने में परिवर्तन नहीं लाएँगे तो हमलोग उसको प्राप्त नहीं कर सकते। वह प्राप्त होगा भी तो परिवर्तन के माध्यम से ही होगा। जो अपने में परिवर्तन ले आएगा वह उनके नजदीक पहुँचता जायेगा। यह प्रयत्न से ही होता है और प्रयत्न ही पुरुषार्थ होता है। प्रयत्न करके ही हम स्वयं के अनुभव से आगे बढ़ सकते हैं। नहीं, तो अच्छी-अच्छी बातों को सुनकर-सुनाकर भी हम-आप उससे वंचित रहेंगे।
क्योंकि भीड़ में रहना साधु का स्वभाव नहीं होता है। लेकिन फिर भी परिस्थितिवश रहना पड़ता है और खोजना होता है कि भीड़ में भी एकान्त में कैसे रहा जाए।
वैसी मजबूरी है तो भीड़ में भी एकान्त में रहने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि हमलोग एकान्त में रहते हैं-अच्छे बात-विचार के साथ, अच्छी भावनाओं के साथ तो फिर हमें किसी तंत्र-मंत्र की आवश्यकता नहीं होती, न हमलोग कोई तंत्र-मंत्र करते हैं।
हमारा स्वभाव, हमारी अच्छी भावना, पवित्र भावना ही हमारे अभीष्ट को प्राप्त करा देती है।
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