भक्ता भैया के सामाजिक चिंतन के केन्द्र में प्रखर समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया थे। उनके आदर्श और पथ प्रदर्शक भी। ये दो ‘राम’ का अदभुत मिलन-संयोग था। खरसिया से डॉ. लोहिया के कच्छ आंदोलन में शामिल वे हुए और अपनी गिरफ्तारी भी दी। इसके बाद तो भक्ता भैया डॉ. लोहिया के समाजवादी रंग में पूरी तरह रंग चुके थे। अब वे देश के उस समाजवादी परिवार का हिस्सा थे जो जार्ज फर्नान्डीस, राजनारायण, लाडली मोहन निगम, शरद यादव और रघु ठाकुर जैसे समाजवादियों का परिवार था। देश में जब इमरजेन्सी लागू हुई, उस समय भक्ता भाई भी रायगढ़ और फिर रायपुर जेल में मीसाबंदी रहे। तमाम दिग्गज समाजवादी राष्ट्रीय नेता भी जेल में थे। यह साथ और सम्पर्क उनके जीवन भर बना रहा। उनके विचारों और हौसलों को और मजबूत करता रहा। जेल उनका दूसरा घर बना रहा। भूमि आंदोलन में सिहावा नगर, कोयला खदान कोरबा में भूमि अधिग्रहण विस्थापितों की हक की लड़ाई के लिये वे जेल गये। अपने एक बेहद आक्रामक और बुलन्द नारे ‘जो जोतेगा खेत उसी का होगा खेत’ के साथ भक्ता भाई का धर्मजयगढ़ जमीन आंदोलन कामयाब रहा और इसी नारे ने किसानों को खेत दिलाया।
खनिज विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष एवं छ.ग. खादी ग्रामोद्योग के पूर्व अध्यक्ष भाई गिरधर गुप्ता नम आँखों से कहते हैं कि ‘‘अग्रज भक्ता भैया हमारे परिवार के गौरव थे।’’ गिरधर भैया की भावना को विस्तारित करती हुई यह कलम कहती है कि भक्ता भाई तो खरसिया के गौरव थे। खरसिया ने उनको छुआ, रचा और गढ़ा। अपने खरसिया को अलविदा कहते हुए शायद उन्होंने यही कहा होगा-
‘‘ हम नहीं जानते हैं कि जिंदगी में
हमने कितने सफर तय किये हैं
याद है बस वो ही हमकदम है
जो तुम्हें छूकर हमने जिये हैं। ’’
स्मृतिशेष भक्ता भैया की दिव्यात्मा को मेरे अशेष नमन