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देश भर में दवा बनाने के नियम सख्त,केंद्र सरकार के निर्देश पर लागू होंगे कड़े गुणवत्ता मानक

 देश की सभी दवा निर्माता कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के कड़े गुणवत्ता मानकों का पालन अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि नए गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने दवा कंपनियों को छह से 12 महीने तक समय दिया है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इनकी अनुपालना हर सूरत करनी होगी। अनुपालना न करने वाली दवा कंपनियों के खिलाफ जुर्माना या लाइसेंस रद्द किए जाने जैसी कड़ी कार्रवाई अमल में…

देश की सभी दवा निर्माता कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के कड़े गुणवत्ता मानकों का पालन अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि नए गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने दवा कंपनियों को छह से 12 महीने तक समय दिया है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इनकी अनुपालना हर सूरत करनी होगी। अनुपालना न करने वाली दवा कंपनियों के खिलाफ जुर्माना या लाइसेंस रद्द किए जाने जैसी कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जा सकती है। इस संर्दभ में 28 दिसंबर को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गई है, जिसके तहत संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) के दिशानिर्दशों को अपनाने को कहा गया है। बतातें चलें कि भारत दुनिया की फार्मेसी कैपिटल के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।

इसी साख को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाए गए हैं। इस वक्त देश में 10500 से ज्यादा दवा निर्माता कंपनियां हैं, जिसमें से सिर्फ 2000 दवा कंपनियां ही डब्ल्यूएचओ जीएमपी सर्टिफाइड हैं। जानकारी के मुताबिक गुणवत्तापूर्ण दवाओं के उत्पादन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दवा निर्माण नियमों में बदलाव किया गया है, अब नियमों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया गया है। सरकार के दिशानर्देश वाले इन बदलावों को लागू करने के लिए 250 करोड़ रुपए से अधिक का वार्षिक कारोबार करने वाली दवा कंपनियों को छह महीने का वक्त दिया गया है, जबकि छोटे और मध्यम निर्माताओं को एक साल के भीतर संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) को अपनाना होगा। एक साल की अवधि में बदलाव करना चुनौतीपूर्ण : हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एचडीएमए) राजेश गुप्ता ने गुणवत्तापूर्ण दवाओं के निर्माण को सुनिश्चित करने पर सरकार की चिंता को साझा करते हुए कहा कि सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए एक वर्ष के भीतर चल रही इकाई में कई बदलावों को शामिल करना एक बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा की सरकार को एमएसएमई के लिए समयसीमा तीन साल तक बढ़ानी चाहिए, क्योंकि अधिकांश एमएसएमई पहले से ही ऋण की देनदारी से जूझ रहे हैं और अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने में समय लगेगा। फार्मा उद्योग जगत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि हालांकि मंत्रालय ने अनुसूची एम में संशोधन करते समय वैश्विक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को अपनाया था, लेकिन दिशानिर्देशों को पेश करने के बजाय उन्होंने इसे और अधिक कठोर प्रावधान बनाते हुए एक नियम शामिल किया है।

क्वालिटी के लिए फार्मा कंपनियां होंगी जिम्मेदार

केंद्र सरकार दवा जारी अधिसूचना के अनुसार कि दवा निर्माता को ही अपने उत्पाद की गुणवता के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी, यह भी निर्माता की ही जिम्मेदारी होगी कि उनका उत्पाद सुरक्षा या गुणवत्ता में कमी के कारण मरीज की जिंदगी को खतरे में तो नहीं डालता। इसके अलावा फार्मा कंपनियों को किसी उत्पाद पर फाइनल या तैयार का लेबल तभी लगाना चाहिए, जब उसके परीक्षण में संतोषजनक नतीजे निकले हों ।

अपनाने होंगे ये बदलावसंशोधित अनुसूची एम के कुछ प्रमुख बदलावों में फार्मास्युटिकल गुणवत्ता प्रणाली (पीक्यूएस), गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन (क्यूआरएम), उत्पाद गुणवत्ता समीक्षा (पीक्यूआर), उपकरणों की योग्यता और सत्यापन, परिवर्तन नियंत्रण प्रबंधन, स्व निरीक्षण, गुणवत्ता ऑडिट टीम, आपूर्तिकर्ताओं का ऑडिट और अनुमोदन, अनुशंसित जलवायु स्थिति के अनुसार स्थिरता अध्ययन, जीएमपी-संबंधित कम्प्यूटरीकृत प्रणाली का सत्यापन, खतरनाक उत्पादों के निर्माण के लिए विशिष्ट आवश्यकताएं आदि शामिल है।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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