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डिप्टी सीएम का पद छिनने की नाराजगी छिपा नहीं पा रहे हैं सुशील कुमार मोदी

पटना- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जुड़वां भाई की तरह करीब डेढ़ दशक तक बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी अपना दर्द छिपा नहीं पा रहे हैं। जबसे उन्हें बिहार में नई सरकार से पार्टी ने पैदल किया है, कम से कम पांच ऐसे मौके आए हैं, जब वह अपनी नाराजदी पचा नहीं पाए हैं। हालांकि, यह भी साफ है कि उनकी जगह पार्टी ने तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को जो डिप्टी सीएम बनवाया है, वह भी उन्हीं के खासमखास माने जाते हैं और बैकडोर से वह पूरी तरह से सत्ता के गलियारे से दूर भी नहीं हुए हैं।

नीतीश कुमार के सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से एक दिन पहले जैसे ही यह बात साफ होने लगी कि इस बार उन्हें अपने खास डिप्टी के बिना ही सरकार चलानी होगी, तभी पहली बार सुशील मोदी का दर्द ट्विटर के जरिए छलक आया था। उन्होंने तपाक से प्रतिक्रिया दी थी कि ‘कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता।’ अगले दिन वह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के स्वागत के लिए पटना एयरपोर्ट जरूर पहुंचे, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और शाह के साथ हुई पार्टी की अहम बैठकों से वह गायब हो गए। जबकि, पिछले चुनाव तक वह बिहार भाजपा के सबसे बड़े चेहरा माने जाते रहे हैं और एक रैली में केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी और नीतीश की जोड़ी को भारतीय क्रिकेट के इतिहास की सचिन और सहवाग की ओपनिंग जोड़ी से तुलना भी की थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुशील मोदी को शपथग्रहण समारोह में बुलाया था, वह पहुंचे भी। एक जगह सीएम ने उन्हें अपने पास भी बुलाया, दोनों पूर्व सहयोगी कुछ कदम साथ भी चले, लेकिन फिर दोनों के राह अलग होते चले गए। सुशील मोदी इस कार्यक्रम में मौजूद जरूर रहे और उन्होंने ट्विटर पर नीतीश समेत सभी मंत्रियों को बधाई संदेश भी दिए, लेकिन उनका वह बॉडी लैंग्वेज पूरी तरह गायब हो चुका था, जिससे बिहार बीजेपी करीब चार दशकों से रूबरू होती रही है। शपथग्रहण के बाद गृहमंत्री अमित शाह, सीएम नीतीश कुमार, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम बड़े नेता रिफ्रेशमेंट के लिए राजभवन के अंदर गए, लेकिन सुशील मोदी ने उनके साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उलटे पांव शपथग्रहण समारोह के बाद फौरन राजभवन से बाहर निकल लिए। राजभवन से निकलने के बाद भाजपा के तमाम बड़े नेता स्टेट गेस्ट हाउस में एक बार फिर से जुटे, लेकिन वहां भी मोदी कहीं नहीं दिखाई पड़े।

जब नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी अलग होने को लेकर मीडिया वालों ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछा था तो उन्होंने जवाब दिया कि ‘यह बीजेपी का फैसला है कि उनकी ओर से कौन मंत्री बनेगा।’ जब उनसे यह पूछा गया कि क्या नई सरकार को मोदी के लंबे अनुभव का लाभ नहीं उठाना चाहिए था, तब वो बोले- ‘यह सवाल बीजेपी नेताओं से पूछा जाना चाहिए। ‘ हालांकि, जब सुशील मोदी के अपसेट वाली वाली बात को लेकर बिहार में पार्टी के चुनाव प्रभारी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पूछा गया तो उन्होंने उनके दुखी होने की बात खारिज करते हुए कहा कि ‘सुशील मोदी जी नाराज नहीं हैं। वह हमारे लिए एक असेट हैं। पार्टी उनके लिए सोचेगी, उन्हें एक नई जिम्मेदारी दी जाएगी।’

वैसे भाजपा के अंदरखाने सुशील मोदी की नई प्लेसमेंट को लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। उन्हें, राम विलास पासवान की खाली सीट से राज्यसभा भेजकर केंद्र में मंत्री बनाने से लेकर सक्रिय राजनीति से दूर देश के किसी राजभवन का जिम्मा सौंपने की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। या फिर पार्टी उन्हें किसी राज्य में संगठन का काम भी सौंप सकती है।

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