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भारत में दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती है नेताओं की कमाई, करप्शन इंडेक्स में भारत 80वें नंबर पर

नई दिल्ली: भारत में राजनीति सबसे शानदार निवेश माना जाता है. भारत में अब राजनीति के दो पहलू हैं. आदमी पैसेवाला हो, तो आसानी से नेता बन सकता है और पैसेवाला ना हो तो नेता बनने के बाद आसानी से पैसा कमा सकता है. बिहार में कल विधानसभा के पहले चरण के लिए वोट डाले गए. पहले चरण में 1066 में से 375 यानी 35% करोड़पति कैंडिडेट हैं. एक प्रत्याशी की औसत संपत्ति करीब दो करोड़ रुपये है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को एक साल में 1.44 करोड़ की सैलरी मिलती है. उससे ज्यादा की औसत संपत्ति तो बिहार विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी की है.

भारत में राजनीति सबसे अच्छा निवेश क्यों मानी जाती है?

राजनीति में नेताओं की संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती है. साल 2019 में दोबारा लोकसभा चुनाव लड़ने वाले बीजेपी के 170 सांसदों की संपत्ति औसतन 13 करोड़ से 17 करोड़ रुपये तक बढ़ी. 5 सालों में शिरोमणि अकाली दल के दो सांसदों की संपत्ति तो औसतन 115 करोड़ रुपये तक बढ़ गई. इसी तरह एनसीपी के 4 सांसदों की संपत्ति 102 करोड़ रुपये तक बढ़ी और कांग्रेस के 38 सांसदों की संपत्ति में औसतन 60 करोड़ की बढ़ोतरी देखने को मिली.

नेताओं की संपत्ति में बढ़ोतरी का आंकड़ा तो है, लेकिन ये संपत्ति कैसे बढ़ी, इसके बारे में किसी को नहीं पता.

इन आंकड़ों पर भी डाले नज़र

  • राज्यसभा के 203 यानी 89% सांसद करोड़पति हैं.
  • राज्यसभा में एक सांसद की औसत संपत्ति 67 करोड़ रुपये की है.
  • इसी तरह से लोकसभा में भी 475 यानी 88% सांसद करोड़पति हैं.
  • यहां एक सांसद की औसत संपत्ति 93 करोड़ रुपये है.

इतनी तेज गति से अगर किसी आम आदमी की संपत्ति में इजाफा हो जाए, तो इनकम टैक्स विभाग उसे तुरंत नोटिस जारी करके जवाब मांग लेगा. जवाब नहीं दे पाए तो फिर कार्रवाई भी होगी, लेकिन नेताओं के साथ ऐसा नहीं होता, क्योंकि हमारे देश में आम आदमी और नेता दोनों के लिए कानून अलग अलग हैं और इसकी एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार भी है. इसीलिए अमेरिका इंग्लैंड और भारत के भ्रष्टाचार में बहुत बड़ा फर्क दिखता है.

  • करप्शन इंडेक्स में 198 देशों में अमेरिका 23वें नंबर पर है.
  • यूके 12वें नंबर पर.
  • और भारत 80वें नंबर पर है.

पश्चिमी देशों में वंशवाद नहीं

यानी हमारे देश में इन देशों से कहीं ज्यादा भ्रष्टाचार है. भारत और पश्चिमी देशों की राजनीति की जब भी तुलना होती है, तो जनकार वंशवाद की परंपरा को एक बड़ा फर्क मानते हैं. भारत में माना जाता है कि नेता का बेटा नेता, अभिनेता का बेटा अभिनेता और उद्योगपति का बेटा उद्योगपति ही बनेगा. लेकिन पश्चिमी देशों में नेता, अभिनेताओं का वंशवाद तो छोड़िये वहां तो बड़े बड़े बिजनेस घरानों में भी वंशवाद नहीं होता है.

  • अमेरिका, यूके और कनाडा में लिस्टेड कंपनियों का मालिकाना हक निवेशकों के पास होता है.
  • अमेरिका में कंपनी के 10 बड़े निवेशकों के पास 43% मालिकाना हक होता है.
  • जबकि परिवार के पास नाममात्र की शेयर होल्डिंग होती है.

भारत में 55 % माता पिता अपने बालिग बच्चों को देते हैं आर्थिक सहायता 

भारत में बड़े बड़े उद्योगपतियों के परिवार ही विरासत को आगे बढ़ाते हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत में अमूमन माता पिता बच्चों के बड़े होने के बाद भी उनकी जिम्मेदारी संभालते हैं, उनका पूरा खर्च उठाते हैं. जबकि अमेरिका और इंग्लैंड में ऐसा नहीं होता. वहां बच्चा 18 साल का होते ही आत्मनिर्भर हो जाता है. अमेरिका में 26 प्रतिशत और यूके में 30 प्रतिशत माता पिता ही अपने बालिग बच्चों को आर्थिक मदद देते हैं. जबकि भारत में 55 % माता पिता अपने बालिग बच्चों को आर्थिक सहायता देते हैं.

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