सरकार के स्कूलों में गिरते शिक्षा गुणवत्ता, दर्ज संख्या कमी के जिम्मेदार कौन हैं … आत्म मंथन-लक्ष्मी कान्त दुबे की कलम से
शासकीय स्कूलों के गिरते शिक्षा गुणवत्ता व दर्ज संख्या मे कमी के लिये कौन हैं असल मायने में जिम्मेदार ….
छत्तीसगढ सरकार व स्कूल शिक्षा विभाग शासकीय स्कूलों की दशा सुधारने आखिर क्यों नही है गंभीर ….
लक्ष्मी कांत दुबे @रायगढ़- छत्तीसगढ़ राज्य मे निजी स्कूलों की संख्या मे लगातार वृद्धि हो रही है l निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या , भव्य बिल्डिंग व बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं के नाम पर निजी स्कूल संचालक उच्च वर्गीय व मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों को अपनी ओर खींच लिया है वही निम्न वर्गीय व निम्न मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चों को शासकीय स्कूलों मे पढ़ाने को मजबूर है , शासकीय स्कूलों की गिरती शिक्षा गुणवत्ता , दर्ज संख्या मे लगातार कमी व गिरता स्तर किसी से छुपा नही है इसी का फायदा उठाकर निजी स्कूल संचालक शिक्षा के नाम पर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं वहीं शासकीय स्कूलों की गुणवत्ता सुधार के नाम पर जिम्मेदार , नेता , जनप्रतिनिधि व अधिकारी मात्र कागजों मे शासकीय स्कूलों की दशा मे सुधार का दावा करते हैं वो महज खोखला हो साबित हो रहा है । शासकीय स्कूलों की दशा सुधारने व दर्ज संख्या बढ़ाने की दिशा में जमीनी स्तर पर कार्य करने कोई तैयार नही है । छत्तीसगढ़ शासन को एक आदेश जारी करने की जरूरत है जिसमे जिम्मेदार , जनप्रतिनिधि व शासकीय अधिकारी व कर्मचारी को शासकीय स्कूल मे अपने बच्चों को पढ़ाने संबंधी दिशा निर्देश जारी करने की जरूरत है ।शासकीय स्कूलों के बच्चों की दर्ज संख्या मे लगातार कमी देखी जा रही है किन्तु छत्तीसगढ शासन व स्कूल शिक्षा विभाग इस विषय को लेकर गंभीर नही है। यह कहना भी गलत नही होगा कि शासकीय स्कूलों के गिरती बच्चों की दर्ज संख्या व शिक्षा गुणवत्ता मे कमी के असल मायने मे जिम्मेदार छत्तीसगढ शासन के जिम्मेदार , हमारे जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी है जो बन्द एसी कमरे मे बैठकर कागजों मे ही योजना बनाकर क्रियान्वयन करने का दावा करते आ रहे थे। शासकीय स्कूलों की दशा सुधारना छोड़ , निजी स्कूलों को बढ़ावा देने व लाभ पहुंचाने मे भी कोई कसर नही छोड़ा जा रहा था यही कारण है कि शासकीय स्कूलों मे बच्चों की दर्ज संख्या बढ़ाने के बदले आरटीई के तहत कुछ गरीब बच्चों को निजी स्कूलों मे प्रवेश दिलाकर लाभ पहुंचाने का काम कर रहे हैं तथा प्रवेश न मिल पाने वाले शेष बच्चे शासकीय स्कूलों मे पढ़ने को मजबूर है ऐसे मे संविधान मे वर्णित समानता का अधिकार पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इस बात से भी नही नकारा जा सकता कि अधिकांश निजी स्कूल मंत्री, नेता , जनप्रतिनिधि , मीडिया वालों के हैं या इनके संरक्षण मे चल रहे हैं यही कारण है कि निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश नही लग पा रहा है तथा मान्यता सम्बन्धी मापदण्डो का पालन न करने के बावजूद इनको मान्यता मिल जा रहा है तथा इसकी आड़ मे निजी स्कूल संचालक शिक्षा के नाम पर अपना व्यापार चला रहे हैं। शासकीय स्कूलों का गिरता शिक्षा स्तर व बच्चों की दर्ज संख्या मे कमी की पोल खोलता यह खबर