खरसिया
जाने कहाँ खो गई अपनी अल्हड़पन वाली गलियां

क्रिकेट के बल्ले और तनी पतंग की डोरियाँ
गेड़ी की रिंच-रिंच और कबड्डी की बोलियाँ
दीवाली के धमाके और होली की पिचकारियां
वो रूठना मनाना और अकेलेपन की तन्हाईयाँ
पनघट की उछल कूद, छलांग लगाने की दूरियां
खेतों की मेढ़ और डिजाइनर धान की बालियां
कोयल की कू-कू और हाथों में गुलेल की गोलियां
लुक्का छिप्पी का खेल और हारने की सिसकियां
जाने कहाँ खो गई अपनी अल्हड़पन वाली गलियां
ऐ दोस्त क्यों दगा दे गए, चलनी थी दूर तक यारियां
,,,,,,,,,,,,फिर लौट आओ ना यार