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सौ साल पहले सिक्किम में खिला था दुर्लभ प्रजाति का आर्किड, अब इस राज्य में मिला

गंगटोक।परिस पाइग्मिया नाम आर्किड की दुर्लभ प्रजाति को सौ साल पहले सिक्किम में सिर्फ एक बार देखा गया था। अब चमोली के सप्तकुंड ट्रैक पर एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस आर्किड के 11 पौधे मिले हैं। इन पौधों का कोई व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं होता, लेकिन जैव विविधता के दौर में इन आर्किड को मिलना कई प्रजातियों के पुनर्जीवित होने का संकेत माना जा रहा है। सजावट की वजह से इसकी बहुत ही मांग है। इसमें औषधीय गुण भी भरपूर हैं। जिस दौर में वन्यजीवों की आबादी 50 से कम वर्षों में दो तिहाई से भी कम होने की खबरें आ रही है।

जैव विविधता की शृंखला कमजोर होने पर कई संकट आए हैं। ऐसे में चमोली के जंगलों से आर्किड का दुर्लभ नन्हा फूल उम्मीद लेकर आया है। आधिकारिक तौर पर सिक्किम के जंगलों में करीब 128 साल पहले देखे गए थे ये फूल। समुद्रतल से करीब 3800 मीटर की ऊंचाई पर चमोली के गोपेश्वर वन प्रभाग के रेंज आफिसर हरीश नेगी और शोधार्थी मनोज सिंह ने इन फूलों को ढूंढ़ निकाला। मनोज सिंह के मुताबिक, वे और हरीश नेगी चमोली के दुर्मी गांव से सप्तकुंड ट्रैक की ओर सिंबई के बुग्यालों में ट्रैकिंग कर रहे थे। करीब 17-18 किलोमीटर के बाद रात घिर आई थी।

वहीं एक गुफा में उन्होंने रात बिताई। सुबह गुफा के ऊपर सात-आठ नन्हें आर्किड पौधे दिखाई दिए। आर्किड फूलों पर अध्ययन कर रहे मनोज कहते हैं कि हमें ये तो पता था कि ये लिपरिस पाइग्मिया जीनस के पौधे हैं। फिर हमने स्थानीय और भारतीय फ्लोरा चेक किया। सिक्किम में सौ साल से भी ज्यादा समय पहले देखे गए ऑर्किड से इनका मिलान किया गया। इसके आसपास बुरांस की प्रजाति चमुआ, तात्सु और आर्किड की एक अन्य प्रजाति ब्लैरिस भी मिली।

इन फूलों के बारे में जानकारी पुख्ता करने के लिए बॉटेनिकल सर्वे आफ इंडिया को नमूने भेज गए। वन विभाग शोध शाखा के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि बॉटेनिकल सर्वे ने इसकी पुष्टि की और आर्किड के इन फूलों को नेशनल हर्बेरियम में शामिल किया। वहां पौधों-फूलों को सुखाकर और उनसे जुड़ी सारी जानकारी कार्ड बोर्ड पर चस्पां कर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए रखा जाता है।

फ्रांस के प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल रिचर्डियाना ने उत्तराखंड वन विभाग की इस खोज को अपने शोध पत्र में प्रकाशित किया है। इन आर्किड फूलों की 320 अलग-अलग प्रजातियां हैं, जो एशिया के गर्म इलाकों में पाई जाती हैं। छोटे और मध्यम आकार के पीले, हरे, नारंगी और बैंगनी फूल आकर्षक होते हैं। भारत में इस जीन्स की 48 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से 10 प्रजाति पश्चिम हिमालय में पाई जाती है। इन पौधों की लंबाई तीन से चार सेंटीमीटर है। बुरांश, गुलथरिया और फालू जैसे हिमालयी फूलों के बीच ये आर्किड फूल छिपे मिले। विश्वभर में फूलों की दुनिया में आर्किड फूलों की बहुत अधिक मांग है।

हॉलैंड में डेन्डोरियम आर्किड का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। थाईलैंड और सिंगापुर में भी बड़े-बड़े फार्म में आर्किड फूल उगाए जाते हैं। सजावट के लिए इस्तेमाल होने वाले इनके कुछ फूल एक-एक महीने तक सुरक्षित रहते हैं। सिक्किम, गोवा, बंगलुरु और केरल में भी आर्किड की खेती की जाती है। देहरादून का मौसम भी आर्किड के लिहाज से अच्छा है।

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