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कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि।।

।।गीता जयंती।।

@पंडित कान्हा शास्त्री

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि ।।

मनुष्य के हाथ में केवल कर्म करने का अधिकार है फल की चिंता करना व्यर्थ अर्थात निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिये। स्वंय भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिंद से कुरुक्षेत्र की धरा पर श्रीमद्भगवदगीता का उपदेश दिया। गीता का ज्ञान गीता पढ़ने वाले को हर बार एक नये रूप में हासिल होता है। मानव जीवन का कोई ऐसा पहलू नहीं है जिसकी व्याख्या गीता में न मिले। बहुत ही साधारण लगने वाले हिंदू धर्म के इस पवित्र ग्रंथ की महिमा जितनी गायी जाये उतनी कम है। किसी भी धर्म में ऐसा कोई ग्रंथ नहीं है जिसके उद्भव का जिसकी उत्पति का दिन महोत्सव के रूप में मनाया जाता हो एकमात्र गीता ही वह ग्रंथ है जिसके आविर्भाव के दिन को बतौर जयंती मनाया जाता है।

ब्रह्मपुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दिया था। इसलिये इस दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हिंदू धर्म के अनुयायी श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ करवाते हैं। वर्तमान में गीता की लोकप्रियता वैश्विक स्तर पर होने लगी है, विभिन्न भाषाओं में इसके अनुवाद से पूरी दुनिया में गीतोपदेश की स्वीकार्यता मानवता के उद्धारक, कल्याणकारी ग्रंथ के रूप में होने लगी हैं। अब गीता जयंती के उत्सव में विभिन्न धर्मों के लोग भी बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं।

गीता के आविर्भाव की कहानी महाभारत में मिलती है। दरअसल गीता महाभारत के अध्याय का ही हिस्सा है। हुआ यूं कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पांडव एक दूसरे के आमने सामने हो गये और युद्ध की घड़ी आ गई तो अर्जुन ने अपने सामने गुरु द्रोण, भीष्म पितामह आदि को सामने पाया। उस समय उसे आभास हुआ कि वह किसके लिये युद्ध कर रहा है, किसके खिलाफ कर रहा है, ये सब तो मेरे अपने हैं, इनकी गोद में मैं खेला हूं, इनसे मैंने शिक्षा प्राप्त की है, ये मेरे ही भाई-बंधु हैं इन्हें मारकर हासिल किये मुकुट को मैं कैसे धारण कर सकूंगा। कुल मिलाकर अर्जुन ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अवसादग्रस्त होकर हथियार त्याग दिये। ऐसे में उनके सारथी बने भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य विमुख होने बचाने के लिये गीता का उपदेश दिया। इसमें उन्हें आत्मा-परमात्मा से लेकर धर्म-कर्म से जुड़ी अर्जुन की हर शंका का निदान किया। भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुये ये संवाद ही श्रीमद्भगवद गीता का उपदेश हैं। इस उपदेश के दौरान ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखलाकर जीवन की वास्तविकता से उनका साक्षात्कार करवाते हैं। तब से लेकर अब तक गीता के इस उपदेश की सार्थकता बनी हुई है और चिरकाल तक बनी रहेगी क्योंकि यह स्वयं भगवान के मानवता के कल्याण के लिये निकला उपदेश है।

श्रीमद् भगवद् गीता का मानव जीवन के लिये बहुत अधिक महत्व है। इसका उपदेश मनुष्य को जीवन की वास्तविकताओं से परिचित करवाता है। उन्हें निस्वार्थ रूप से कर्म करने के लिये प्रेरित करता है। इन्हें कर्तव्यपरायण बनाता है। सबसे अहम बात यह भी है कि जब भी आप किसी भी तरह की शंका में घिरे हों, गीता का अध्ययन करें आपका उचित मार्गदर्शन अवश्य होगा। इसके अध्ययन, श्रवण, मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है। लेकिन इसके संदेश में मात्र संदेश नहीं हैं बल्कि ये वो मूल मंत्र हैं जिन्हें हर कोई अपने जीवन में आत्मसात कर पूरी मानवता का कल्याण कर सकता है। गीता अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर आत्मज्ञान से भीतर को रोशन करती है। अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम, लोभ आदि से मुक्ति का मार्ग बताती है गीता। दरअसल गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने भक्तों के उद्धार के लिये गाया हुआ मधुर गीत ही है। अर्जुन तो उसे हम तक पंहुचाने का जरिया मात्र बने हैं।

श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीताजी वर्णन करने के उपरांत कहा गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता ।।
गीता सुगीता करने योग्य है।अर्थात श्री गीताजी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है जो की स्वयं भगवान पद्मनाभ के मुखारविन्द से निकली हुई है फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है?
इस गीता शास्त्र में मनुष्य मात्र का अधिकार है।चाहे वह किसी भी वर्ण,आश्रम में स्थित हो परन्तु भगवान में श्रद्धालु और भक्ति युक्त होना परम् आवश्यक है।क्योंकि भगवान् से इन्हें अपने भक्तों में ही इसका प्रचार करने की आज्ञा दी है।तथा यह भी कहाँ है चाहे वह स्त्री,पुरुष,शुद्र, वैश्य और पाप योनि भी मेरे परायण होकर परम् गति को प्राप्त करते हैं(9/32)
अपने अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा मेरी पूजा करके मनुष्य परम् सिद्धि को प्राप्त करता है।(18/46)
इन सब पर विचार करने से यही ज्ञात होता है कि परमात्मा की प्राप्ति का सबको अधिकार है ।

महामना मालवीय जी ने भी कहा: इस अदभुत ग्रन्थ के 18 छोटे अध्यायों में इतना सारा सत्य, इतना सारा ज्ञान और इतने सारे उच्च, गम्भीर और सात्त्विक विचार भरे हुए हैं कि वे मनुष्य को निम्न-से-निम्न दशा में से उठा कर देवता के स्थान पर बिठाने की शक्ति रखते हैं । वे पुरुष तथा स्त्रियाँ बहुत भाग्यशाली हैं जिनको इस संसार के अन्धकार से भरे हुए सँकरे मार्गों में प्रकाश देने वाला यह छोटा-सा लेकिन अखूट तेल से भरा हुआ धर्मप्रदीप प्राप्त हुआ है ।

गांधी जी ने भी अपने विचार रखे : एक बार मैंने अपना अंतिम समय नजदीक आया हुआ महसूस किया तब गीता मेरे लिए अत्यन्त आश्वासनरूप बनी थी | मैं जब-जब बहुत भारी मुसीबतों से घिर जाता हूँ तब-तब मैं गीता माता के पास दौड़कर पहुँच जाता हूँ और गीता माता में से मुझे समाधान न मिला हो ऐसा कभी नहीं हुआ है |

गीता जयंती मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है इस दिन को मोक्षदा एकादशी का उपवास भी रखा जाता है।
इस वर्ष गीता जयंती 14 दिसंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी जो गीता की 5158वीं वर्षगांठ होगी।
एकादशी तिथि आरंभ: रात 09 बजकर 30 मिनट से (13 दिसम्बर)
एकादशी तिथि समाप्त: रात 11 बजकर 35 मिनट पर (14 दिसम्बर)।

भगवान श्री कृष्ण आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें व भगवद् गीता आपके जीवन के अंधकार को मिटाकर उसे ज्ञान से प्रकाशित करे। आप सभी को मेरी ओर से गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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