‘‘पारिस्थितिकी संतुलन, जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन’’ विषय पर शासकीय महात्मा गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरसिया में ऑनलाईन राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी सह कार्यशाला का आयोजन दिनांक 05 जून 2021 को किया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान एवं हिन्दी विभाग के संयुक्त संयोजन में आईक्यूएसी ने इस संगोष्ठी को कराते हुए पर्यावरण के प्रति शुभचिंतन किया। निधि पटेल के द्वारा राज्य गीत प्रस्तुति उपरांत सरला जोगी विभागाध्यक्ष प्राणी शास्त्र ने संगोष्ठी के उद्देश्य के बारे में बताया।
प्राचार्य डॉ0 पी सी घृतलहरे ने समस्त अतिथि वक्ताओं का स्वागत किया। सरला जोगी, डॉ0 रमेश टण्डन, मनोज साहू, ए के पटेल संयोजित इस संगोष्ठी में आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए प्रो0 बी के पटेल प्राचार्य नवागढ़ ने प्लास्टिक व पेपर बैग पर प्रतिबंध का समर्थन करते हुए कहा कि इससे 65 लाख पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। अपनी जीवन शैली में बदलाव लाते हुए कार्बन उत्सर्जन को 16 प्रतिशत कम किया जा सकता है। मोबाईल डाटा और वाई-फाई को आवश्यक होने पर ही प्रयोग करें। सामूहिक वाहन का प्रयोग करें। जरूरत पड़ने पर ही पानी का उपयोग करें। उतना ही भोजन का निर्माण करें जितना आवश्यक है, भोजन की बर्बादी से भी पर्यारण प्रदूषित होता है। हमिदिया महाविद्यालय भोपाल से आमंत्रित वक्ता दार्शनिक प्राध्यापक डॉ0 जे एस दुबे ने समग्रता के सिद्धांत के अन्तर्गत फूल के सौन्दर्य और जंगल के स्वरूप का उदाहरण दिया।
धर्म और अध्यात्म को प्रकृति के साथ जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि एक पेड़ लगाना एक हजार बावड़ी (कुआँ) बनाने के बराबर होता है। हम नारी की तरह प्रकृति की भी सुरक्षा करें। भोपाल से ही भूगोलवेत्ता, समाज सेविका प्राध्यापक डॉ0 अल्पना त्रिवेदी ने पर्यावरण के प्रति अलग नजरिया प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम प्रकृति को न तो बना सकते हैं, न ही नष्ट कर सकते हैं। अतः हमें प्रकृति को बचाने की नहीं अपितु मानव जाति को बचाने की चिंता करनी है। प्रकृति के साथ हमारा क्या रिश्ता होना चाहिए, प्रकृति का सम्मान किस तरह हो, जिससे हम बचे रह सकें, इस पर चिंतन करना चाहिए। रायगढ़ से प्राणी शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ0 रमेश तम्बोली मानव शरीर के पंच तत्वों का वैज्ञानिक दर्शन प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हमें पर्यावरण को राष्ट्रीय जिम्मेदारी के रूप में अपनाने की आवश्यकता है। जल, जमीन और जंगल का प्राकृतिक चक्र स्वयमेव चलते रहता है परन्तु मानवीय दखल ने इसे नष्ट की कगार पर ला खड़ा कर दिया है। हमारा सम्पूर्ण प्रकार का स्वास्थ्य, प्रकृति के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी पर विस्तार से डॉ0 तम्बोली ने जानकारी दी। डॉ0 रमेश टण्डन के मंच संचालन और मनोज साहू के आभार के साथ सम्पन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी सह कार्यशाला ने लगभग 146 प्रतिभागियों को निश्चित रूप से पर्यावरण के प्रति जागरूक किया।