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कोरोना उपचार प्रोटोकॉल की दोबारा समीक्षा करेगा भारत, अभी इन दवाओं से होता है इलाज

भारतीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने कोविड-19 के उपचार के लिए अमल में लाए जाने वाली प्रोटोकॉल की समीक्षा करने का निर्णय लिया है। यह फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक बड़े परीक्षण के नतीजे के बाद पाया गया कि आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में से चार में अस्पताल में भर्ती मरीजों में होने वाली मृत्यु को कम करने में बहुत कम या कोई लाभ नहीं हो रहा है।

इनमें एंटीवायरल ड्रग रेमडेसिविर, मलेरिया ड्रग हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू), एंटी-एचआईवी संयोजन लोपिनवीर और रीटोनवीर और इम्युनोमोड्यूलेटर इंटरफेरॉन हैं। पहली दो दवाईयां कोविड-19 के मध्यम रोगियों के इलाज में दी जाती हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रोटोकॉल की समीक्षा अगले संयुक्त टास्क फोर्स की बैठक में की जाएगी। इसकी अध्यक्षता नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य डॉ. वीके पॉल और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव करेंगे।

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डॉ. भार्गव ने कहा, ‘हां हम नए सबूतों के आलोक में क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल पर दोबारा गौर करेंगे।’ जहां एचसीक्यू को भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल द्वारा मामूली रूप से बीमार कोविड-19 रोगियों में ऑफ-लेबल उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है। वहीं आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के तहत रेमडेसिविर को मंजूरी दी गई है।

डब्ल्यूएचओ के सॉलिडैरिटी ट्रायल के नाम वाले इस शोध में कहा गया है कि अब 30 देशों के 405 अस्पतालों में इन दवाओं की प्रभावशीलता पर संदेह है। यह डाटा कोरोना वायरस का इलाज करवा रहे 11,266 वयस्कों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें से 2,750 को रेमडेसिविर, 954 को एचसीक्यू, 1,411 को लोपिनवीर, 651 को इंटरफेरॉन प्लस लोपिनवीर, 1,412 को केवल इंटरफेरॉन और 4,088 को बिना किसी अध्ययन के दवा दी गई।

भारत भी परीक्षणों का एक हिस्सा था और इन चार दवाओं का परीक्षण किया। आईसीएमआर के अनुसार, जिसने देश में परीक्षणों का समन्वय किया, 15 अक्तूबर, 2020 तक 937 प्रतिभागियों के साथ 26 सक्रिय स्थानों से डाटा इकट्ठा किया गया। आईसीएमआर ने एक बयान में कहा कि अंतरिम परिणामों से पता चलता है कि कोई भी अध्ययन दवा निश्चित रूप से मृत्यु दर को कम नहीं करती है।

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