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नवदुर्गा की प्रथम शक्ति-भगवती शैलपुत्री

  • वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
  • वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

पं. कान्हा शास्त्री ने बताया कि
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार यहीं नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुईं थी। तब इनका नाम ‘सती’ था। इनका विवाह भगवानशंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सभी देवताओं को यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमन्त्रित किया लेकिन शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में निमन्त्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने की लिए मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी। उन्होंने कहा प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं, अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमन्त्रित किया है उनके यज्ञ भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमें नहीं बुलाया है। ऐसी परिस्थिति में तुम्हारा वहां जाना श्रेयस्कर नहीं होगा। शंकर जी के इस उपदेश से सती को बोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, माता और बहनों से मिलने की व्यग्रता और उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की आज्ञा दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास का भाव था। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को संताप हुआ। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा था। दक्ष ने उनके पति शंकर जी के प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। उन्हें लगा भगवान शंकर की बात न मान यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी ग़लती की है। वह अपने पति का अपमान सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान उस दारुण दु:खद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया। सती ने अगले जन्म में शैलराजहिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हेमवती स्वरूप से देवताओं का घमंड का नाश किया था।

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Gopal Krishna Naik

Editor in Chief Naik News Agency Group

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