
रायपुर . अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (All India Kisan Sangharsh Coordination Committee) और संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर कल 27 दिसम्बर को पूरे देश के किसानों के साथ ही छत्तीसगढ़ के किसान भी गांव-गांव में मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ ताली-थाली-ढोल-नगाड़े-शंख बजाकर अपना विरोध प्रकट करेंगे और किसान विरोधी तीन कानूनों और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग करेंगे।
छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा सहित छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के सभी घटक संगठन इस देशव्यापी आंदोलन में हिस्सा लेंगे।
उन्होंने कहा है कि किसानों की तीन कृषि विरोधी कानूनों की वापसी की मांग को महज कुछ संशोधनों तक सीमित करने की कोशिश की जा रही है और सी-2 लागत के आधार पर समर्थन मूल्य के सवाल को कानूनी दायरे से बाहर बता कर टरकाने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने कहा कि आंदोलनकारी किसान संगठनों से उनके मुद्दों पर बातचीत करने के बजाए सरकार उन पर अपना एजेंडा थोपना चाह रही है और फर्जी किसान संगठनों से बातचीत का दिखावा कर रही है, जबकि आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि चूंकि ये कानून किसानों के लिए डेथ वारंट है, इसलिए इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश नहीं है और इसे वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में संशोधनों से इसका कॉर्पोरेटपरस्त चरित्र नहीं बदलने वाला है। अतः अलोकतांत्रिक ढंग से पारित कराए गए इन कानूनों की वापसी ही एकमात्र उपाय है।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि देश में पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन होने के बावजूद केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते आज हमारा देश दुनिया में भुखमरी से सबसे ज्यादा पीड़ित देशों में से एक है और इस देश के आधे से ज्यादा बच्चे और महिलाएं कुपोषण और खून की कमी का शिकार हैं। कृषि के क्षेत्र में जो नीतियां लागू की गई है, उसका कुल नतीजा किसानों की ऋणग्रस्तता और बढ़ती आत्महत्या के रूप में सामने आ रहा है। अब ये कानून किसानों के लिए डेथ वारंट बनने जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि संसद में 14.5 करोड़ किसान परिवारों को सम्मान निधि देने की घोषणा की गई थी, लेकिन 5.5 करोड़ परिवारों को इसके दायरे से बाहर करके अब इसे महज 9 करोड़ लोगों तक सीमित कर दिया गया है। यह है किसानों को सम्मानित करने का मोदी सरकार का तरीका!, जिसका ढोल कल उन्होंने अपने भाषण में पीटा है। इसी तरह समर्थन मूल्य देने के सवाल पर झूठ की पोल खुलने के बाद यह सरकार अब इस मुद्दे को कानून के दायरे से बाहर बताकर बातचीत से ही इंकार कर रही है।




