
विचार तारन प्रकाश सिन्हा
एक नदी नदी भर नहीं होती। वह केवल धरती पर ही नहीं बहती। धरती के भीतर भी बहती है दिलो के भीतर भी एक नदी में केवल पानी का बहाव नहीं होता। उम्मीदों का भी बहाव होता है। आकांक्षाओं का, सपनों का स्मृतियों का, किस्से-कहानियों का गीतों का कविताओं का और भी न जाने किन-किन अनगिनत चीजों का बहाव एक नदी में होता है। लेकिन एक नदी के नदी होने के लिए, पानी ही सबसे जरूरी शर्त है। इसलिए किसी नदी को बचाने के लिए पानी को बचाना ही जरूरी शर्त है। रायगढ़ के लोगों ने अपनी एक नदी को बचाने की ठानी है। इस बात का संकल्प लिया है कि जैसे पुरखों ने इस नदी को सहेज कर उन्हें सौंपा है वैसे ही वे भी इसे सहेज कर आने वाली पीढ़ी को सौपेगे, ताकि उनकी स्मृतियों का प्रवाह भी नदी के साथ बना रहे। जिले की प्यास बुझाने वाली और किसानों को लहलहाते खेत देने वाली केलो नदी रायगढ़ को जीवनरेखा है, इसलिए यह केवल केलो नदी नहीं है, केलो मैया है।

रायगढ़ जिले के अंतिम छोर में एक बड़ा ही खूबसूरत पहाड़ है पहाड़ लुडे़ग । यही कलो का उदम है। वहां से निकलकर केलो मैया 97 किलोमीटर तक बहती हुए अपना स्नेह लुटाती है। इसका सबसे ज्यादा स्नेह रायगढ़ जिले के ही हिस्से में आया है। यहां यह 90 किलोमीटर का सफर तय करती है। रायगढ़ के लोगों के सहयोग से जिला प्रशासन ने केलो मैया का उपकार चुकाने की एक मुहिम शुरू की है। कैलो है तो कल है इस मुहिम का सूत्र वाक्य है, जिसमें ध्वनित है कि. हम केलो को बचाकर अपने कल को बचा रहे है। लेकिन यह मुहिम केवल वादों को बचाने भर की मुहिम नहीं है, उसे सवारने को भी मुहिम है। केलो सरक्षण अभियान का मूल उद्देश्य है कि प्राकृतिक जल को व्यर्थ बहने से रोका जाए और रुके हुए जल को भूमिगत किया जाए।

केलो नदी के संरक्षण के लिए एरिया ट्रीटमेंट और मरवा ट्रीटमेंट दोनों मोर्चे पर काम किया जा रहा है। नदी तट पर बसे गांवों को भी इसमें शामिल किया गया है। केलो नदी के पुनरुद्धार के लिए वॉटरशेड के रिज टू वेली कांसेप्ट से काम हो रहा है। चोटी पर नदी के उदम से लेकर नीचे की ओर जाने वाले नदी की लाइनिग को जोड़ा जा रहा है। इसमें पूरे क्षेत्र को ढलान के अनुसार अलग-अलग भागों में बाटा गया है। जिसमे बहाव का नियंत्रित करने तथा जल को स्टोर करने के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे है, ताकि पानी का अधिकतम उपयोग हो। एरिया और रवा ट्रीटमेंट के तहत नदी के तटों का कटाव गाद के जमाव, बहाव में कभी, मू- जल स्तर में गिरावट जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए कार्य किए जा रहे है। इसमें नरवा ट्रीटमेंट के लिए बशवुड चैक लूज बोल्डर चेक, गेबियन स्ट्रक्चर, चेक डेम तथा स्टॉप डैम का निर्माण किया जाएगा। एरिया ट्रीटमेंट के तहत विभिन्न स्ट्रक्चर जैसे कंटूर ट्रेव, पॉलेशन टैंक स्टेटगार्ड ट्रेय बनाए जाएंगे। नदियों की तेज जलधारा तटों के कटाव का प्रमुख कारण होती है। तटीय क्षेत्र में वृक्षारोपण इसे रोकने का एक कारगर उपाय है। केलो संरक्षण अभियान में इस मानसून में नदी के किनारे स्टों में करीब 50 एकड़ में वृहद वृक्षारोपण किया जाएगा। पौधे तैयार किए जा रहे है। भूमि भी चिन्हांकित कर ली गई है। इस वृक्षारोपण की खास बात यह होगी कि पौधे लगाने के साथ उसकी सुरक्षा के भी समुचित प्रबंध होंगे। ताकि ये पौधे बढ़े और पेड़ बने

जल संरक्षण में जन सहभागिता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी मोर्च सुरक्षा के लिए सैनिकों की तैनाती है। प्रकृति ने हमें अनगिनत उपहारों से की नवाजा है। नदी, पहाड़ जंगल ये सब मानव जीवन के विकास और सामाजिक- आर्थिक प्रगति के आधार है। अपने प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण उपयोग आज बहुत सी समस्याएं लिए खड़ा है। एक नागरिक के रूप में हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि हम इन संसाधनों के प्रति कराता का भाव लिए यथाशक्ति इनके संरक्षण का प्रयास करें। जंगलों की हरियाली नदियों की कलकल की आवाज, पहाड़ों की ताजी हवा कुदरत के ये सारे वरदान हमारी आने वाली पीढ़ियों को तभी नसीब होगे जब हम उनके लिए सभी जरूरी जतन करें। रायगढ़ जिले में चल रही इस मुहिम के पीछे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रेरणा रही है। उन्होंने प्रदेश के विकास के अनिवार्य घटक के रूप में नदी-नालों के संरक्षण और संवर्धन के कार्य को भी शामिल किया है। राज्य की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी नदी नालों को बचाने पर उनका जोर रहा है। छत्तीसगढ़ की इस सीमा पर रायगढ़ से लेकर ओडिशा के भीतर तक फैली अनूठी केलो संस्कृति को संवारने के लिए उन्हीं की मंशा के अनुरूप 01 जून से रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उस महोत्सव में शामिल होने जब मुख्यमंत्री रायगढ़ आएंगे तब उनके हाथों रायगढ़ जिला अपनी केला मैया का आरती भी उतारेगा। केलो संरक्षण अभियान में लोगों की स्व स्फूत सहभागिता देखने को मिल रही है।

गांव- गांव में लोग ग्राम सभा के दौरान पानी को बचाने उसके विवेकपूर्ण और समुचित उपयोग करने की शपथ ले रहे हैं। पानी का हर एक का संचय करने का प्रण कर रहे है। जल संरक्षण आज सिर्फ जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि कर्तव्य भी है, ताकि धरती में जीवन का यह आधार हमेशा बना रहे।

हमारी परंपरा में एक नदी केवल एक नदी नहीं है, वह स्वर्ग से उत्तरी हुई देवी है।




