पानी की उपलब्धता आंकने को हिमालयी ग्लेशियरों की गहराई नपवाएगी सरकार

हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण पड़ रहे प्रभाव से चिंतित केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र के सभी बर्फीले ग्लेशियरों की गहराई का आकलन कराने का निर्णय लिया है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. राजीवन ने रविवार को कहा, यह परियोजना अगली गर्मियों में जून या जुलाई माह में शुरू की जाएगी। इस दौरान ग्लेशियरों के आयतन का आकलन करने के साथ ही उनमें उपलब्ध पानी को मापने का काम किया जाएगा।
मंत्रालय के तहत काम करने वाला नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ऑशियन रिसर्च (एनसीपीओआर) इस पूरी परियोजना का संचालन करेगा। एनसीपीओआर के निदेशक रविचंद्रन ने कहा, देश का रिमोर्ट एंड हाई अल्टीट्यूड रिसर्च सेंटर हिमांश भी हिमालयी जलवायु पर अध्ययन करेगा। यह सेंटर 2016 में स्थापित किया गया था।
रविचंद्रन ने कहा, सबसे पहले चंद्रा नदी घाटी क्षेत्र में मौजूद सात ग्लेशियरों का अध्ययन करने की योजना है। चंद्रा नदी चिनाव नदी की मुख्य सहायक नदी है। चिनाव नदी खुद भी सिंधु नदी की सहायक नदी है।
बता दें कि हिमालय के ग्लेशियर वहां से निकलने वाली नदियों के पानी का मुख्य स्रोत हैं। हिमालयी नदियां सिंधु-गंगा के मैदानों की लाइफलाइन भी हैं, जिनमें करोड़ों लोगों की जनसंख्या रहती हैं।
एनसीपीओआर निदेशक ने कहा, ग्लेशियरों का इलाका पहले से ही सैटेलाइटों की मदद से ज्ञात हैं, लेकिन उनका आयतन जानने की आवश्यकता है। ग्लेशियरों की गहराई के अध्ययन का उद्देश्य उनका आयतन को समझना है। यह हमें पानी की उपलब्धता को समझने में भी मदद देगा और यह भी बताएगा कि ग्लेशियर बढ़ रहे हैं या सिकुड़ रहे हैं।
रडार तकनीक के उपयोग से जानेंगे गहराई
रविचंद्रन ने कहा, हम अध्ययन के लिए माइक्रोवव सिग्नलों वाली रडार तकनीक का उपयोग करेंगे। यह बर्फ के भीतर घुसकर पत्थरों तक पहुंच सकती है। यह काम सैटेलाइट इमेज नहीं कर सकती हैं। पत्थरों से परावर्तित होकर लौटने वाले सिग्नल हमें ग्लेशियर की गहराई को समझने में मदद करेंगे। अमेरिका और ब्रिटेन के पास यह तकनीक है, इसलिए हम इस तकनीक के लिए उनकी मदद लेंगे।
हेलीकाप्टरों की मदद से काम करेंगे रडार
ग्लेशियरों की गइराई मापने वाले रडारों को शुरुआत में हेलीकाप्टरों में रखकर उपयोग किया जाएगा। एक बार यह सफल हो गया तो हिमालय के अन्य हिस्सों में भी अध्ययन के लिए इसका उपयोग किया जाएगा। बाद में अन्य ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए विमान या ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा।



