रायगढ़ से पुरी तक की यात्रा: हमसफ़र एक्सप्रेस में एक यादगार सफर…

समुद्र की लहरें भले ही लौट गईं,पर यात्रा की स्मृतियाँ हर किसी के मन में लहरों की तरह गूंजती रहेंगी…
रायगढ़— जब बात यात्रा की हो और गंतव्य हो पुरी जैसे पवित्र स्थल का,तो हर सफर अपने आप में एक कहानी बन जाता है। रायगढ़ से पुरी तक की यह ट्रेन यात्रा कुछ ऐसी ही रही — साधारण सी शुरुआत, मगर अनुभवों से भरपूर…
शाम का वक़्त ट्रेन पकड़ने के लिए हमेशा से मुफ़ीद माना जाता है। यही सोचकर हम भी अपनी तैयारी में लग गए थे। योजना साफ थी — रात में ट्रेन पकड़ो और सुबह जब नींद खुले तो पुरी की पावन धरती पर हों।
परन्तु समय और इच्छा किसका अपने हिसाब से हुआ है जो हमारा होता, टिकट के व्यवस्था में जुटे नरेन्द्र बाबु को जैसे तैसे टिकट का व्यवस्था किया, फिर 20917 / पुरी हमसफ़र एक्सप्रेस समय पर रायगढ़ रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर आ लगी थी। हमारा टिकट नरेन्द्र बाबु को रायगढ़ से नहीं मिलने पर झारसुगुड़ा ले लिया था,इसलिए रायगढ़ से ट्रेन में चढ़ते ही टीटी साहब मुखातिब होते अन्य यात्रियों की तरह हमारी टीम भी जैसे-तैसे झारसुगुड़ा पहुँचे और अपनी आरक्षित सीट पर काबिज़ हुए।

बैठते ही माहौल थोड़ा सुकून भरा लगा परिवार जो साथ था। इस बार बोगी में ज्यादा भीड़ नहीं थी। सोचा सफर आराम से बीतेगा। मोबाइल निकालकर फेसबुक, व्हाट्सऐप खोले और साथ में इंटरनेट को थोड़ा गरियाया — जैसे ये सफर का एक अनिवार्य हिस्सा हो।
धीरे-धीरे कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला। ट्रेन अपनी रफ्तार में थी और हम सपनों की दुनिया में। जब आंख खुली तो रात के आठ बज रहे थे। अंदाजा लगाया कि ट्रेन भुवनेश्वर के आस-पास रही होगी। खिड़की से बाहर झांका तो अंधेरे में भी शहर की रौशनी और हलचल महसूस हो रही थी।

यह सफर महज़ एक यात्रा नहीं था, बल्कि एक मौका था खुद से मिलने का — थोड़े सुकून के लम्हों का, और तकनीक से थोड़ी दूरी बनाकर खुद में खो जाने का। ट्रेन के पहियों की लय, बाहर की बदलती तस्वीरें और बोगी में पसरा सन्नाटा — सब कुछ मिलकर इस यात्रा को खास बना रहे थे।
ट्रेन ने पुरी के प्लेटफॉर्म पर दस्तक दी, तो एक सुकून भरा एहसास था। धार्मिक नगरी पुरी, जहां भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर है, हर यात्री को एक अलग ही ऊर्जा और आस्था का अनुभव कराता है।

इस यात्रा ने यह दिखा दिया कि अगर सफर में ठहराव कम हो, तो थकान नहीं होती। और जब गाड़ी हमसफ़र जैसी हो, तो मंज़िल तक पहुंचना भी एक यादगार अनुभव बन जाता है।
पुरी के समुद्र तट पर लहरों की अटखेलियों के साथ रचा गया एक अविस्मरणीय पल

गोल्डन बीच पुरी के स्वर्णिम समुद्र तट पर एक अद्भुत और भावनात्मक दृश्य देखने को मिला जब समुद्र की लहरों की अटखेलियों के बीच श्रीमती माया नायक ने एक विशेष क्षण को जीवन के पन्नों में दर्ज किया। यह अवसर केवल एक पारिवारिक या व्यक्तिगत आयोजन नहीं था, बल्कि मानवीय संबंधों, आत्मीयता और सामाजिक समर्पण का प्रतीक बन गया।

इस अविस्मरणीय पल के साक्षी बनने के अध्यक्ष हेमन्त पटेल, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शारदा पटेल, उनके सुपुत्र कमलेश पटेल, (चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययन कर रहे कुछ वर्षों में डाक्टर उपाधि ले क्षेत्र के लोगों का सेवा करने वाले डाक्टर बाबु आगे कहेंगे) सचिव एवं मीडिया प्रभारी नरेन्द्र पटेल, तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा पटेल। सभी ने इस ऐतिहासिक क्षण को गहराई से अनुभव किया और अपने स्नेह,समर्थन व सहभागिता से इसे और भी खास बना दिया।

पुरी का समुद्र उस दिन केवल लहरें नहीं उछाल रहा था, बल्कि वह मानो साक्षी बनकर इस आत्मिक मिलन का स्वागत कर रहा था। नीले आसमान के नीचे, लहरों के संग बहते पलों में भावनाओं का समंदर उमड़ पड़ा — जहाँ रिश्तों की गरिमा,सामाजिक एकता और मानवीय मूल्यों का संगम स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।

श्रीमती माया नायक, पैर के हड्डियां चटक गई थी जो बेहतर तौर ठीक हो भी नहीं पाई थी फिर भी लड़खड़ाते कदमों से श्रीमती शारदा हेमन्त पटेल, श्रीमती पुष्पा नरेन्द्र पटेल, डाक्टर बाबु के साथ बिताए गए इन पलों को शब्दों में समेटना आसान नहीं, लेकिन उनकी मुस्कान,उनकी सहजता और आत्मीय व्यवहार ने हर किसी के मन में अमिट छाप छोड़ दी।

पुरी का यह यात्रा केवल एक व्यक्तिगत मिलन नहीं था, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द्र, मानवीय मूल्यों और परिवारिक एकता का सजीव उदाहरण था। समुद्र की लहरें भले ही लौट गईं,पर इस दिन की स्मृतियाँ हर किसी के मन में लहरों की तरह गूंजती रहेंगी।

अब अगला पड़ाव था पुरी — जहां जगन्नाथ जी की भव्य रथ यात्रा की तैयारी अपने चरम पर थी। लेकिन यह सफर अपने आप में ही एक रथ यात्रा जैसा अनुभव दे गया — शांत, भक्तिमय और आत्मिक…




